Feb 22, 2017

बूँदें नहीं सितारे टपके-साजन की सहेली १९८०

कई बार ऐसा होता है किसी लोकप्रिय गीत की आड़ में
कोई मधुर गीत सुनाई नहीं देता या यूँ कहें लोकप्रिय
गीत के चकाचौंध में वो गीत कहीं खो जाता है. आज
सुनते हैं एक ऐसा ही गीत मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा
और उषा खन्ना द्वारा संगीतबद्ध जिसे रफ़ी ने गाया है.

सौतन, बेवफा इत्यादि शब्दों के नाम वाली फिल्मों
बनाने वाले सावन कुमार टाक ने इस फिल्म का नाम
थोडा अलग रखा है. साजन की सहेली-ये कहने का ही
दूसरा तरीका है. साजन, सुहागन अन्य शब्द हैं जिनके
प्रयोग से कुछ और फिल्मों के नाम बन जाते हैं. लीक
से हट कर भी उन्होंने नाम रखे अपनी फिल्मों के जैसे
सलमा पे दिल आ गया, गोमती के किनारे.




गीत के बोल:

बूँदें नहीं सितारे टपके हैं कहकशां से
बूँदें नहीं सितारे टपके हैं कहकशां से
सदके उतर रहे हैं तुम पर ये आस्मां से
बूँदें नहीं सितारे टपके हैं कह्कशां से

मोती के रँग रुत के क़तरे दमक रहे हैं
या रेशमी लटों में जुगनू चमक रहे हैं
आँचल में जैसे बिजली कौंधे यहाँ वहाँ से
सदके उतर रहे हैं तुम पर ये आस्मां से

बूँदें नहीं सितारे टपके हैं कहकशां से

देखे तो कोई आलम भीगे से पैरहन का
पानी में है ये शोला या नूर है बदन का
अँगड़ाई ले रहे हैं अरमां जवां जवां से
सदके उतर रहे हैं तुम पर ये आस्मां से

बूँदें नहीं सितारे टपके हैं कहकशां से

पहलू में आ के मेरे क्या चीज़ लग रही हो
बाहों के दायरे में तस्वीर लग रही हो
हैरान हूँ के तुमको देखूँ कहाँ कहाँ से
सदके उतर रहे हैं तुम पर ये आस्मां से

बूँदें नहीं सितारे टपके हैं कहकशां से
सदके उतर रहे हैं तुम पर ये आस्मां से
बूँदें नहीं सितारे टपके हैं कह्कशां से
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Boonden nahin sitare tapke-Sajan ki saheli 1980

Artists: Vinod Mehra, Rekha

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