माटी कहे कुम्हार को-कबीर भजन
एक समय रेडियो पर खूब बजा करता था ये. इसे ढेर सारे गायक
गा चुके हैं अपने अंदाज़ में. कबीर वाणी सदा से प्रेरणादायी रही है
और ये मनुष्य को ज़मीन से जुड़े रहने में मदद करती है.
गीत के बोल:
माटी कहे कुम्हार को तो क्या रौंदे मोहे
एक दिन ऐसा होएगा मैं रौंदूंगी तोहे
माटी कहे कुम्हार को तो क्या रौंदे मोहे
एक दिन ऐसा होएगा मैं रौंदूंगी तोहे
आये हैं तो जायेंगे राजा रंक फ़कीर
आये हैं तो जायेंगे राजा रंक फ़कीर
एक सिंहासन चढ़ी चले एक बंधे ज़ंजीर
दुर्बल को ना सताइए जाकी मोटी हाय
बिना जीव के सांस सों लौह भस्म होई जाए
चलती चाकी देख के दिया कबीर रोये
दो पाटन के बीच में बाकी बचा न कोए
बाकी बचा न कोए
दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोए
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे को होए
पत्ता टूटा डाली से ले गयी पवन उडाये
पत्ता टूटा डाली से ले गयी पवन उडाये
अब के बिछड़े कब मिलेंगे दूर पड़ेंगे जाए
कबीर आप ठगाइए और ना ठगिये कोए
आप ठगे सुख उपजे और ठगे दुःख होए
और ठगे दुःख होए
माटी कहे कुम्हार को तो क्या रौंदे मोहे
एक दिन ऐसा होएगा मैं रौंदूंगी तोहे
मैं रौंदूंगी तोहे
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Maati kahe kumhar se-Non films song