कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की-शंकर हुसैन १९७७
इस गीत को सुन कर ही दांतों तले उँगलियाँ दबाने की इच्छा
होती है. ये कमाल अमरोही का लिखा हुआ गीत है. संगीत
खय्याम का है और इसे रफ़ी ने गाया है.
कमाल अमरोही के नाम ज्यादा गीत नहीं हैं फिल्म संगीत के
खजाने में अतः उनका ये गीत किसी प्रोफेशनल गीतकार की
स्टाइल में लिखा होना सोचने पर मजबूर अवश्य करता है कि
ये क्या वाकई उन्होंने लिखा है या फिर उन्होंने ज्यादा गीत
क्यूँ नहीं लिखे फिल्मों के लिए.
गीत के बोल:
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
बहुत खूबसूरत
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पा कर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा कसमसा कर
सरहाने से तकिये गिराती तो होगी
वही ख़्वाब दिन की मुंडेरों पे आ के
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की खामोशियों में
मेरी याद से झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे-धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कँपकँपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिख कर
वो दांतों में उँगली दबाती तो होगी
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
ज़बान से अगर उफ़ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होंगे
ज़मीन पर दुपट्टा लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लुड़की
हर एक चीज हाथों से गिरती तो होगी
तबियत पे हर काम खलता तो होगा
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Kahin ek masoom nazuk si ladki-Shankar Hussain 1977
Artist: Kanwaljeet
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