Apr 14, 2018

चार दिनों की चाँदनी है-गर्ल्स स्कूल १९४९

४० के दशक से एक गीत सुनते हैं अनिल बिश्वास के संगीत
निर्देशन वाला. कवी प्रदीप इसके रचयिता हैं और इसे गाया
है शंकर दासगुप्ता और लता मंगेशकर ने.

फिल्म के गीतों में दर्शनवाद बोलती फिल्मों के आगमन के
समय से ही रहा है. सन्देश देने के लिए गीत एक अच्छा
माध्यम होते थे. आज तो साधन बहुत से हैं मगर उस समय
अखबार और रेडियो प्रमुख साधन हुआ करते थे.





गीत के बोल:

बार बार तुम सोच रही हो मन में कौन सी बात
मन में कौन सी बात
बार बार तुम सोच रही हो मन में कौन सी बात
मन में कौन सी बात
चार दिनों की चाँदनी है
चार दिनों की चाँदनी है फिर अँधियारी रात
फिर अँधियारी रात
चार दिनों की चाँदनी है

आज तुम्हारे चेहरे की रंगत बोलो क्यों बदली है
मुझे भी ख़ुद मालूम नहीं के मेरी कश्ती किधर चली है
मुझे भी ख़ुद मालूम नहीं के मेरी कश्ती किधर चली है
दूर वो देखो झिलमिल झिलमिल चमक रही है अपनी मंज़िल
उस मंज़िल की ओर सजनिया चलो चलें एक साथ

चार दिनों की चाँदनी है फिर अँधियारी रात
फिर अँधियारी रात
चार दिनों की चाँदनी है

कितना है आसान जगत में मन के महल बनाना
पर कितना मुश्क़िल है अपने हाथ से उन्हें गिराना
कितना है आसान जगत में मन के महल बनाना
पहले एक धुँधली सी आशा फिर मजबूरी और निराशा
प्रेम के पथ पर हर प्रेमी को मिली यही सौग़ात
प्रेम के पथ पर हर प्रेमी को मिली यही सौग़ात

चार दिनों की चाँदनी है फिर अँधियारी रात
फिर अँधियारी रात
चार दिनों की चाँदनी है
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Chaar dinon ki chandni hai-Girls School 1949

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