खुशी दो घडी की-दूर का राही १९७१
सुनते हैं आज. छोटा सा मगर दिल को छू लेने वाला गीत है.
किशोर कुमार ने कुछ फिल्मों में खुद संगीत भी दिया था. इस
फिल्म के ४ गीत काफी लोकप्रिय हैं और ये उनमें से एक है. ये
किशोर भक्तों में ज्यादा लोकप्रिय है और आम जनता में कम.
ऐसे गीत चाहे जिस भी गायक के हों आपको उस गायक के
परम भक्तों के पास ही मिलेंगे या फिर जो थोडा अलग हट के
कुछ सुना करते हैं.
अच्छे गीत लोकप्रिय हो सकते हैं और नहीं भी. संजीदा गीत
अक्सर सेंसिटिव किस्म के श्रोता ज्यादा पसंद करते हैं. जिनमें
बात थोड़ी गहरी हो वे गीत आपको आम जनता की पसंद की
लिस्ट में कम मिलेंगे. सीधे सपाट शब्दों वाले गीत जनता की
पकड़ में ज्यादा आते हैं और जनता गुनगुना लेती है.
ये किशोर के गाये शांत से गीतों में सबसे ज्यादा शांत गीत है.
एक साज़ बज रहा है सिर्फ साथ में.
यहाँ आपको एक शब्द का अर्थ बता दूं, बिना इसके गीत सुनने का
मज़ा अधूरा रह जायेगा.
‘मरहले’ –चरण, Stage (जैसे प्रथम चरण, द्वितीय चरण इत्यादि.)
इसका प्रयोग कई रचनाओं में हुआ है मगर उदाहरण के लिए एक
पेश है सिराज अजमली की रचना से दो पंक्तियाँ-
‘मरहले सख़्त बहुत पेश-ए-नज़र भी आए
हम मगर तय ये सफ़र शान से कर भी आए’
गीत के बोल:
खुशी दो घडी की मिले ना मिले
खुशी दो घडी की मिले ना मिले
शमा आरजू की जले न जले
खुशी दो घडी की मिले ना मिले
हाँ, रहगुज़र में कई मंजिल भी मिलीं
रहगुज़र में कई मंजिल भी मिलीं
देख कर एक पल दम लिया फिर चले
खुशी
हाँ, हर कदम पर नये मरहले से खड़े
हर कदम पर नये मरहले से खड़े
हम चले दिल चला दिल चला हम चले
खुशी दो घडी की मिले ना मिले
शमा आरजू की जले न जले
खुशी
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Khushi do ghadi ki-Door ka rahi 1971
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