तुमने पिया दिया सब कुछ-उस पार १९७४
कोई रोक नहीं पाया. इस आने जाने में कुछ अपने जब जाते
हैं या जिनसे जुड़ाव हो जाता है वे लोग जाने पर दुखी कर
जाते हैं.
दो दिन पहले ही हमने गीतकार योगेश को याद किया था
और आपको अन्तरा चौधरी का गाया गाना सुनवाया था.
गीतकार योगेश भी अपना जीवन सफर पूरा कर दूसरे लोक
को चल दिये. वो अपनी छाप छोड़ गए हैं फिल्म उद्योग पर.
उनके कुछ गीत कालजयी हैं जिनमें फिल्म आनंद, मंजिल,
मिली, उस पार के गाने और बहुत कुछ जो आप सुबह से
मीडिया, सोशल मीडिया पर पढ़ चुके होंगे.
सरल स्वभाव के योगेश की लेखनी में सरलता, सादगी और
सौम्यता उनके स्वभाव अनुरूप रही. फिल्म उद्योग के प्रपंच
और जबरिया तुकबंदी शायद उन्हें रास नहीं आई. आज एक
गीतकार ने उन्हें याद करते हुए एक शब्द का प्रयोग किया-
exceptional जो सटीक है.
वर्तमान समय में जो बेहतर गीतकार लिख रहे हैं वे भी कभी
स्तिथि अनुसार रफ़ लिरिक्स लिख लेते हैं. आज के समय में
यूँ कहें २०१० के बाद उनके गिने चुने गीत हैं. फिल्म उद्योग
चाहता तो अच्छी विरासत को संजोये रखने में उनका योगदान
अधिक मात्रा में ले सकता था.
सुनते हैं फिल्म उस पार से एक गाना जिसमें ना जाने क्यूँ
सदियों का दर्द मिनटों में छुपा है. ये ऐसा गीत तो नहीं जिसे
सभी संगीत प्रेमी सुनते हों मगर गंभीर संगीत प्रेमी इस गीत से
अनजान नहीं हैं.
बोलों में दर्द की लकीर तो नहीं मगर इसकी धुन में ज़रूर है.
बोल तो इसके लाजवाब हैं जो भावनाओं का बखान हौले हौले
से करते हैं. अतिरेक कहीं भी नहीं है इसमें. गीत को फिल्म के
कथानक से जोड़ के देखें तो ये एक बेहतरीन सिचुएशनल गीत
है.
फिल्म उस पार का निर्देशन बासु चटर्जी ने किया था. फिल्म के
लिए पटकथा लेखन भी उन्हीं का है. फिल्म सन १९६७ की एक
चेकोस्लोवाकिया में निर्मित फिल्म रोमांस फॉर ब्यूगल का हिंदी
रूपांतरण है. फिल्म फ्रांटिसेक रुबिन की एक रोमांटिक कविता
पर आधारित है. लेखक ने १९६१ में ये कविता लिखी थी.
नायक और नायिका के चेहरे हर्षोल्लास से लबालब हैं. कोई वजह
नहीं है इस गीत को सुन कर दर्द महसूस करने की. बांसुरी के स्वर
भी व्यथित से ही हैं और ये मुझे समझ नहीं पड़ा इसे सुन के कि
क्या संगीतकार की भावनाएं इसमें उमड़ के बाहर आ गई हैं. एक
कलाकार की सेंसिटिविटी किस रूप में और कब बाहर आती है ये
समझ पाना बेहद मुश्किल काम है.
इसे सुन के पहले बर्मन दादा बहुत याद आते थे अब योगेश भी
आयेंगे. क्या ये शैलेन्द्र के ही लिखे शब्दों-हैं सबसे मधुर वो गीत
जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं का सटीक उदाहरण नहीं है.
योगेश ने फिल्म गीत लेखन में गीतकार शैलेन्द्र की कमी की काफी
हद तक भरपाई की.. उनके इस निखार के लिए सलिल चौधरी का
योगदान भी नहीं भुलाया जा सकेगा जो स्वयं भी एक लेखक थे
और अच्छे लेखन के कद्रदान भी.
गीत के बोल:
तुमने पिया ओ ओ ओ ओ
तुमने पिया दिया सब कुछ मुझको अपनी प्रीत दई के
राम करे यूँ ही बीते जीवन तुम्हरे गीत गई के
तुमने पिया दिया सब कुछ मुझको अपनी प्रीत दई के
राम करे यूँ ही बीते जीवन तुम्हरे गीत गई के
तुमने पिया
मैं तो हूँ भोली ऐसी भोली पिया
जैसे थी राधिका कान्हा की प्रेमिका
मैं तो हूँ भोली ऐसी भोली पिया
जैसे थी राधिका कान्हा की प्रेमिका
श्याम कहीं
श्याम कहीं बन जइयो ना तुम मेरी सुध भुलई के
राम करे यूँ ही बीते जीवन तुम्हरे गीत गई के
तुमने पिया
मेरे मितवा रे
मेरे मेरे मितवा रे मिले जब से तुम मुझे
बिंदिया माथे सजे पायल मेरी बजे
मेरे मितवा रे मिले जब से तुम मुझे
बिंदिया माथे सजे पायल मेरी बजे
माँग भरे
माँग भरे मेरी निस दिन अब सिन्दूरी सांझ अई के
तुमने पिया दिया सब कुछ मुझको अपनी प्रीत दई के
राम करे यूँ ही बीते जीवन तुम्हरे गीत गई के
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Tumne piya diya sab kuchh-Us paar 1974
Artists: Vinod Mehra, Mausami Chatterji
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