May 31, 2017

मैं कहीं कवि न बन जाऊँ-प्यार ही प्यार १९६९

सब्जी मंडी में घूमते हुए एक सब्जी वाले को आवाज़
लगाते सुना-प्याज ही प्याज. ५ रूपये किलो. अब इस
प्रकार की आवाज़ पर फिल्म का नाम याद आ गया.

यह फिल्म है सन १९६९ की प्यार ही प्यार. जैसे प्यार
और प्याज दो शब्द मौजूद हैं वैसे ही प्यारा और प्याजा
शब्द भी अस्तित्व में हैं. प्याजा शब्द का प्रयोग उन देसी
डिशेज़ में होता है जो दो प्याजा कहलाती हैं.

शब्द में लगी छोटी मात्रा को गाते समय बड़ी कठिनाई
होती है. हमने गीत के भाव को ध्यान में रखते हुए बोल
में वही लिखा है जैसा कि गाया जा रहा है. बिल्डिंग की
लिफ्ट जो बंद है किसी वजह से उसमें ये गीत गाया जा
रहा है. हसरत के बोल, शंकर जयकिशन का संगीत है
और रफ़ी की आवाज़. धर्मेन्द्र और वैजयंतीमाला पर इसे
फिल्माया गया है.



गीत के बोल:

मैं कहीं कवि न बन जाऊँ
तेरे प्यार में ऐ कवीता

तुझे दिल के आइने में  मैंने बार बार देखा
तेरी अँखड़ियों में देखा तो छलकता प्यार देखा
तेरा तीर मैंने देखा तो जिगर के पार देखा
मैं कहीं कवि न बन जाऊँ

तेरा रंग है सलोना  तेरे अंग में लचक है
तेरी बात में है जादू  तेरे बोल में खनक है
तेरी हर अदा मुहब्बत  तू ज़मीन की धनक है
मैं कहीं कवि न बन जाऊँ

मेरा दिल लुभा रहा है  तेरा रूप सादा सादा
ये झुकी झुकी निगाहें  करे प्यार दिल में ज्यादा
मैं तुझी पे जान दूँगा  है यही मेरा इरादा
मैं कहीं कवि न बन जाऊँ
……………………………………………….
Main kahin kavi na ban jaoon-Pyar hi pyar 1969

Artists: Dharmendra, Vaijayantimala

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP