रुपहले परदे का माया यही है जब आप चमक रहे होते हैं तो सब
वाह वाह करते हैं और आपको दिल-ओ-जान से याद किया करते
हैं. एक बार आप हाशिये पर पहुंचे तो कोई पूछने वाला नहीं बचता
नवम्बर के इस महीने में कुछ दिल्मी कलाकार इस दुनिया को फानी
कह गए उनमें से एक हैं अपने ज़माने की खूबसूरत और प्रतिभा
संपन्न अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित.
अभिनेता संजीव कुमार से वो विवाह करना चाहती थीं. नियति
को कुछ और मंजूर था. संजीव कुमार असमय संसार छोड़ चले
उसके बाद सुलक्षणा पंडित आजीवन अविवाहित रहीं.
दर्शकों और सिने प्रेमियों से पूछा जाये तो अधिकांश यही बात
कहेंगे कि इन दोनों का विवाह हो जाना था.
सुलक्षणा पंडित की आवाज़ में एक गीत सुनते हैं फिल्म
संकोच का. इसे लिखा है एम् जी हशमत ने और धुना बनायींई
है कल्यानजी आनंदजी ने. अपने समय का ये एक बेहद चर्चित
गीत है.
गीत के बोल:
बांधी रे काहे प्रीत पिया के संग अंजानी रीत
बांधी रे काहे प्रीत पिया के संग अंजानी रीत
बाली उमर में मैं ना समझी बाली उमर में मैं ना समझी क्या है प्रीत की रीत
बांधी रे काहे प्रीत, प्रीत पिया के संग अंजानी रीत
पास रही तो मैं ना समझी दूर हुई तो जाना
दूर हुई तो जाना प्यार में कैसे अपना बन के कोई बने बेगाना
कैसे बचेगा अब जीवन कैसे बचेगा अब जीवन बिन साथी बिन मिलो
बांधी रे काहे प्रीत, प्रीत पिया के संग अंजानी रीत
अंग लगी है पेड़ की बेला लहर को मिले किनारा लहर को मिले किनारा बिन साजन के मैं हूँ अकेली मेरा कौन सहारा ऐसा सूना लागे जीवन ऐसा सूना लागे जीवन जैसे सुर बिन गीत
बांधी रे काहे प्रीत, प्रीत पिया के संग अंजानी रीत बाली उमर में मैं ना समझी बाली उमर में मैं ना समझी क्या है प्रीत की रीत
बांधी रे काहे प्रीत, प्रीत पिया के संग अंजानी रीत.
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