कोई सागर दिल को-दिल दिया दर्द लिया १९६६
रफ़ी की प्रशंसा किया करते थे. उन्होंने रफ़ी के लिए कुछ बहुत
ही उम्दा किस्म की धुनें बनायीं जिनमें से एक है ६६ की फिल्म
दिल दिया दर्द लिए से-कोई सागर दिल को बहलाता नहीं. इस
गीत के बोल भी अनमोल है और शकील बदायूनी ने सरल से
शब्दों में एक टूटे हुए इंसान के दिल की बात कह दी है.
कभी आप जिंदगी में भंवर में उलझें हों तो गीत के कोई खास
हिस्सा याद हो जाता है और वो दीर्घकाल में आपका प्रिय भी हो
जाया करता है, कुछ ऐसा ही है गीत के दूसरे अंतरे में.
खमाज थाट के राग कलावती पर ये गीत आधारित है.
गीत के बोल:
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
बेख़ुदी में भी करार आता नहीं
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
मैं कोई पत्थर नहीं इन्सान हूँ
मैं कोई पत्थर नहीं इन्सान हूँ
कैसे कह दूं गम से घबराता नहीं
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
कल तो सब थे कारवाँ के साथ-साथ
कल तो सब थे कारवाँ के साथ-साथ
आज कोई राह दिखलाता नहीं
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
बेख़ुदी में भी करार आता नहीं
ज़िन्दगी के आईने को तोड़ दो
ज़िन्दगी के आईने को तोड़ दो
इसमें अब कुछ भी नज़र आता नहीं
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
बेख़ुदी में भी करार आता नहीं
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
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Koi sagar dil ko behlata nahin-DIl diya dard liya 1966
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