खुदा-ए-बर्तर तेरी ज़मीं पर-ताजमहल १९६३
का एक ऐसा गीत सुनेंगे आज जो कम सुन गया है. गीत के बोल
हर युग के लिए प्रासंगिक से महसूस होते हैं.
विचार मंथन कराने वाला ये गीत साहिर ने लिखा है. रोशन ने इसका
संगीत तैयार किया है. गायिका हैं लता मंगेशकर.
गीत के बोल:
खुदा-ए-बर्तर तेरी ज़मीं पर
ज़मीं की खातिर ये जंग क्यों है
हर एक फ़तह-ओ-ज़फ़र के दामन पे
खून-ए-ईन्सां का रंग क्यों है
खुदा-ए-बर्तर
ज़मीं भी तेरी हैं हम भी तेरे
ये मिल्कियत का सवाल क्या है
ये कत्ल-ओ-ख़ूँ का रिवाज़ क्यों है
ये रस्म-ए-जंग-ओ-जदाल क्या है
जिन्हे तलब है जहान भर की
उन्ही का दिल इतना तंग क्यों है
खुदा-ए-बर्तर
ग़रीब माँओ शरीफ़ बहनों को
अम्न-ओ-इज़्ज़त की ज़िंदगी दे
जिन्हे अता की है तू ने ताक़त
उन्हे हिदायत की रोशनी दे
सरों में किब्र-ओ-ग़ुरूर क्यों हैं
दिलों के शीशे पे ज़ंग क्यों है
खुदा-ए-बर्तर
ख़ज़ा के रस्ते पे जानेवालों को
बच के आने की राह देना
दिलों के गुलशन उजड़ न जाए
मुहब्बतों को पनाह देना
जहाँ में जश्न-ए-वफ़ा के बदले
ये जश्न-ए-तीर-ओ-तफ़ंग क्यों है
खुदा-ए-बर्तर तेरी ज़मीं पर
ज़मीं की खातिर ये जंग क्यों है
हर एक फ़तह-ओ-ज़फ़र के दामन पे
खून-ए-इन्सां का रंग क्यों है
खुदा-ए-बर्तर
..................................................................
Khuda-e-bartar-Tajmahal 1963
Artist: Beena Rai