वो कभी मिल जाएँ तो–गज़ल गुलाम अली
हैं जिन्हें गुनगुनाना आसान काम नहीं होता उनमें से
एक है आज के लिए. सुनिए अख्तर शीरानी की लिखी
हुई गज़ल.
इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए
गज़ल के बोल:
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए
चाँदनी रातों में इक-इक फूल को
बेख़ुदी कहती है सजदा कीजिए
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बेख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
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Wo kabhi mil jayen to-Ghulam Ali Ghazal
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