मैंने जब से तुझे ए जाने-ए-ग़ज़ल-गैर फ़िल्मी गीत
आज एक गैर फ़िल्मी गीत सुनते हैं जिसे रफ़ी ने गाया है.
इसकी तर्ज़ बनाई है ताज अहमद खान ने.
गीत के बोल:
मैंने जब से तुझे ए जाने-ए-ग़ज़ल देखा है
मैंने जब से तुझे ए जाने-ए-ग़ज़ल देखा है
मुस्कुराता हुआ इस दिल में कँवल देखा है
मैंने जब से तुझे ए जाने-ए-ग़ज़ल देखा है
जब मिली है मेरी नज़रों से तेरी शोख नज़र
जब मिली है मेरी नज़रों से तेरी शोख नज़र
तेरी पलकों की घनी छाँव में मैंने अक्सर
जगमगाता एक ताजमहल देखा है
मैंने जब से तुझे ए जाने-ए-ग़ज़ल देखा है
मस्त कलियों का तबस्सुम तेरे नदाज़ में है
मस्त कलियों का तबस्सुम तेरे नदाज़ में है
और झरनों का तरन्नुम तेरी आवाज़ में है
और झरनों का तरन्नुम तेरी आवाज़ में है
तेरे जलवों में बहारों का बदल देखा है
मैंने जब से तुझे ए जाने-ए-ग़ज़ल देखा है
तू हर एक रंग में है रूह-ए-समां जाने चमन
कभी होंठों पे हंसी है कभी माथे पे है शिकन
कभी लहराती हुई ज़ुल्फ़ में बल देखा है
मैंने जब से तुझे ए जाने-ए-ग़ज़ल देखा है
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Maine jab se tujhe ae jaan-e-ghazal-Rafi Non film song
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