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Apr 15, 2012

मेरा छोटा सा घर बार-प्रेम पर्वत १९७३

सार्थक, अर्थक और निरर्थक सिनेमा के बिंदुओं में
आन्दोलित होती हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कई ट्री
ऐसे हैं जो समय के थपेडों से धराशायी हो गए.
मगर उनकी परछाईयाँ कभी कभार उभर आती
हैं जनता के जेहन में सुनहरी यादों के फॉर्म में.

सन १९७३ की फिल्म है प्रेम पर्वत जिसे देख पाना
संभव नहीं है. वजह वही हैं जो भगवान दादा की
फिल्मों की रीलों के साथ हुआ था. फिल्म के गीत
ज़रूर उपलब्ध हैं सुनने के लिए. कभी कभी मैं
सोचता हूँ जयदेव के खाते में थकी हुई फ़िल्में और
कंगाल फिल्मकार ही क्यूँ आये. प्रारब्ध शायद
इसी का नाम है.

सुनते हैं पद्मा सचदेव रचित एक गीत जिसे गाया
है लता मंगेशकर ने.




गीत के बोल:

मेरा छोटा सा घर बार मेरे अंगना में
मेरा छोटा सा घर बार मेरे अंगना में
……………………………………………….
Mera chhota sa gharbaar-Prem parbat 1973

Artist: Unknown

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Jul 17, 2009

ये नीर कहाँ से बरसे-प्रेम परबत १९७३

पद्मा सचदेव डोगरी भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री हैं। भारतीय साहित्य
जगत में उनका योगदान उल्लेखनीय है। डोगरी भाषा को प्रसिद्धि दिलाने
में इनका बहुत योगदान रहा है। हिन्दी फिल्मों में समय समय पर कई
साहित्यकारों ने अपनी सेवाएँ दी हैं। इस गाने के बोल उत्कृष्ट कोटि के हैं।
जयदेव ने एक मधुर धुन बनाकर उसको अमर कर दिया है। इस गाने के
लिए सबसे उपयुक्त गायिका लता ही हो सकती थीं । इस फ़िल्म में सतीश कौल,
रेहाना सुलतान और नाना पलसीकर की मुख्य भूमिकाएं हैं। हमारे देश में एक
बात बहुत बढ़िया है फिल्मों के मामले में-कुछ लीक से हट कर बनी हुई फिल्मों
को ऑफ-बीट कहा जाता है अंग्रेजी में और कुछ कला फ़िल्में जो पटरी से उतरी
होती हैं उनको भी कभी कभी ऑफ-बीट कहा जाता है। ये बात और है कि कोई
कला फिल्म या ऑफ-बीट फिल्म गलती से हिट हो जाये तो उसको व्यावसायिक
फिल्म का दर्ज़ा प्राप्त नहीं होता।



गाने के बोल

ये नीर कहाँ से बरसे है
ये बदरी कहाँ से आई है

ये नीर कहाँ से बरसे है
ये बदरी कहाँ से आई है
ये बदरी कहाँ से आई है

गहरे गहरे नाले, गहरा गहरा पानी रे
गहरे गहरे नाले, गहरा पानी रे
गहरे मन की, चाह अनजानी रे

जग की भूल-भुलैयाँ में
जग की भूल-भुलैयाँ में
कूँज कोई बौराई है

ये बदरी कहाँ से आई है

चीड़ों के संग, आहें भर लीं
चीड़ों के संग, आहें भर लीं
आग चनार की माँग में धर ली
बुझ ना पाये रे, बुझ ना पाये रे
बुझ ना पाये रे राख में भी जो
ऐसी अगन लगाई है

ये बदरी कहाँ से आई है

पंछी पगले, कहाँ घर तेरा रे
पंछी पगले, कहाँ घर तेरा रे
भूल न जइयो ,अपना बसेरा रे
कोयल भूल गई जो घर
कोयल भूल गई जो घर
वो लौट के फिर कब आई है
वो लौट के फिर कब आई है

ये नीर कहाँ से बरसे है
ये बदरी कहाँ से आई है
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Ye neer kahan se barse-Prem Parbat 1973

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