हाय रे सोशल मीडिया-गैर फ़िल्मी गीत
के अलावा जो बड़ा वर्ग है वो नेताओं और पत्रकारों का है. ये
इन टाईमपासों में से अपने अपने समर्थक ढूंढते हैं, एजेंडे चलाते
हैं, प्रभावित, भ्रमित और जो जो संभव है सब करते हैं. जानकारी
के अलावा भ्रांतियों का भी खूब आदान प्रदान होता है.
रोज कुछ मुद्दे उठाये जाते हैं, जो २-३ दिन बाद सब्जीमंडी में बचे
कचरे जैसे इकट्ठे होते जाते हैं. कचरे का ढेर बन्ने से पहले कुछ
लोग अपने काम का सामान निकल लेते हैं जो भविष्य में और
समय आने पर इस्तेमाल किया जा सके.
पिछले ५-६ साल में इस्तेमाल में एकदम से उछल आया है. इससे
फायदा ये हुआ कि तरह तरह के दृष्टिकोण और पहलू उभर के
सामने आये और नुक्सान ये कि जबरन उछल कूद के कारनामे
भी सामने आने लगे. कहीं कहीं तो ऐसा लगता है सारे समाज
सुधारक और जनता के हमदर्द यहीं इकट्ठे हैं. स्वयम्भू एक्सपर्ट
आपको खूब देखने को मिलेंगे इधर. गुटबाजी तो वैसी ही है जैसी
हमारे देश में और जगहों पर है. उन जगहों में से एक एक नाम
है समाज. छद्म नामों से जनता उपलब्ध है. लड़कियों के फोटो
चिपका के लड़के बैठे हुए हैं.
जनता के कुत्ते छिपकलियाँ और कॉकरोच तक फोटो शेयरिंग साईट
पर उपलब्ध हैं मगर घर में एक दूसरे से समवाद का आदान प्रदान
कम होता जा रहा है. हद तो ये है कि दांत मांजने का भी वीडियो
लगा रखा है कुछ ने. अब क्या गां.. धुलाई का ही बाकी है?
वार्तालाप का एक उदाहरण प्रस्तुत है- लड़की बोली: तू शायर है मैं
तेरी शायरी. इसे सुन के लड़का जो मैथ्स का स्टूडेंट था बोला-मैं
पैराबोला तू टेनजेंट मेरी. भाषा त्रिकोणमिति की हो या ज्यामिति की
समझ आना चाहिए बस. यही फंडा है प्रेम संवाद का. रेवोल्यूशनरी
आइडियाज़ देखने को मिलते हैं यहाँ जो किसी समय केवल कुछ
जुमलों और फ़िल्मी गानों तक सीमित थे.
गीत के बोल:
अब इसे तो सुन के समझ लो यारों.
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Haye re social media-Non film song
Artists: Manch Aapka
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