कल चौदहवीं की रात थी-गैर फ़िल्मी गीत जगजीत सिंह
किसी अमावस्या के दिन हम ये ग़ज़ल अवश्य याद कर सकते
हैं- कल चौदहवीं की रात थी। गीतकारों और शायरों ने चाँद के बारे
में लिखा है तो रात की खूबसूरती का बयां भी अपने अपने अंदाज़ में
किया है। इसको कई गायकों ने गाया है।
आज हम आपको सुनवा रहे हैं जगजीत सिंह की खनकती हुई
आवाज़ में यही ग़ज़ल। इसका शुरुआती वर्ज़न(८० के दशक वाला)
थोड़ा अधिक मीठा है। इसमें भी मिठास है मगर "लो कैलोरी वाली" ।
स्टेज शो में आपके पास पूरा स्कोप होता है घुमा घुमा के चौके देने का।
प्रस्तुतइ में तबला वादक और वायलिन वादक को भी २०-२०
खेलने का भरपूर अवसर मिला है। यहाँ जगजीत सिंह के गाने के
अंदाज़ से आपको दो गायक ज़रूर याद आयेंगे-अनूप जलोटा और
गुलाम अली। इब्ने इंशा नाम के मशहूर शायर ने इस ग़ज़ल को
लिखा है और जब भी इसको सुनो ऐसा लगता है ताज़े फूल अभी
अभी बागान से लाये गये हों।
गीत के बोल:
कल चौदहवीं की रात थी
कल चौदहवीं की रात थी शब् भर रहा चर्चा तेरा
शब् भर रहा चर्चा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कुछ ने कहा ये चाँद है
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा
हम भी वहीँ मौजूद थे हम से भी सब पूछा किये
हम हंस दिए, हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कल चौदहवीं की रात थी
शब् भर रहा चर्चा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
इस शहर में किससे मिलें हमसे तो छूटी महफ़िलें
हर शख्स तेरा नाम ले हर शख्स दीवाना तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कल चौदहवीं की रात थी
शब् भर रहा चर्चा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कूचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगले तेरे, परबत तेरे बस्ती तेरी, सेहरा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कल चौदहवीं की रात थी
बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक तेरा, रुसवां तेरा शायर तेरा, इंशा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कल चौदहवीं की रात थी
शब् भर रहा चर्चा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कुछ ने कहा यह चाँद है
कुछ ने कहा यह चाँद है
कुछ ने कहा चेहरा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
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Kal chaudvin ki raat thi-Jagjit Singh
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