बाबा मन की ऑंखें खोल-धूप छाँव १९३५
धूप छाँव इस प्रकृति के अभिन्न हिस्से हैं. मानव जीवन है
तो विचार हैं , विचार हैं तो सुख दुःख, अच्छा बुरा, उंच नीच,
गुण अवगुण, सब अस्तित्व में हैं। इनपर जब दार्शनिक चर्चा
होती है तो संत वाणी प्रकट होती है ।
ये वाक्य आपको कई बार सुनाई दिया होगा
-बाबा मन की आँखें खोल । मन्ना डे के चाचा के. सी. डे
यानि कृष्ण चंद्र डे को हम ऐसे ही पहचानते हैं , पुराने
संगीत प्रेमी उनको पहले जानते हैं, मन्ना डे को बाद में।
नेत्रहीन होने के बावजूद उन्होंने गुणवत्ता के मानक
स्थापित किए । ये उनका सबसे ज्यादा सुना जाने वाला गीत है।
फ़िल्म का नाम है-धूप छाँव. ये सन १९३५ में रिलीज़ हुई थी ।
पंडित सुदर्शन के बोल हैं और संगीत आर सी बोराल का ।
इसको मैंने पहली बार ध्यान से सन १९७७ में सुना है ।
गाने के बोल:
बाबा मन की आँखें खोल
बाबा मन की आँखें खोल
बाबा मन की आँखें खोल
बाबा मन की आँखें खोल
बाबा मन की आँखें खोल
दुनिया क्या है, एक तमाशा
चार दिनों की, झूठी आशा
दुनिया क्या है, एक तमाशा
चार दिनों की, झूठी आशा
पल में तोला, पल में माशा
हाँ, पल में तोला, पल में माशा
ज्ञान तराजू ले के हाथ में
तोल सके तो तोल
ज्ञान तराजू ले के हाथ में
तोल सके तो तोल
बाबा मन की ऑंखें खोल
मतलब की सब दुनियादारी
मतलब की सब दुनियादारी
मतलब के सब हैं संसारी
मतलब की सब दुनियादारी
मतलब के सब हैं संसारी
जग में तेरा वो हितकारी
जग में तेरा वो हितकारी
तन मन का सब ज़ोर लगाकर
नाम हरि का बोल
हाँ, तन मन का सब ज़ोर लगाकर
नाम हरि का बोल
बाबा मन की आँखें खोल
बाबा मन की आँखें खोल
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