Dec 7, 2010

चड्डी पहन के फूल खिला है-मोगली सीरियल

जब तक चिट्ठाजगत को ऑक्सिजन नहीं मिल जाती आइये
बिना विवरण कुछ गीत सुन लें। वैसे भी हिंदी ब्लॉग जगत पर
इतने ज्ञानी लोग और ज्ञान का अपार भंडार है कि समय ही नहीं
मिलता सारे ब्लॉग पढ़ पाने का।

बहुत पहले एक टी वी सीरियल आया करता था-मोगली जो कि
रुडयार्ड किपलिंग की पुस्तक जंगल बुक पर आधारित है। इसका
शीर्षक गीत लिखा था गुलज़ार ने। बच्चों और बड़े बच्चों
दोनों को सामान रूप से भाया ये गीत। आखिर बनियान पहन के
भी कहीं फूल खिलते हैं भला? मोगली नाम का पत्र शायद इसमें
केवल चड्डी पहने दिखाई देता है। इसलिए चड्डी और फूल का
नाता बना दिया गया।

कुछ सफल लेखकों का मानना है की मूल विषय से ध्यान भटका
कर इधर उधर की बातें करके पोस्ट को लम्बा बनाओ और अंत
में फिर विषय पर वापस आ जाओ जैसे गाय-भैंस गोधूलि वेला
में घर को वापस आ जाती है। उसी से प्रेरणा पाकर मैंने भी
कुछ करने की सोची और एक फिल्म से अलग हट के विषय चुना
आइये आज गीत में सम्मिलित एक शब्द के ऊपर कुछ बातें
करते हैं।


"अथ चड्डी उवाच"

चड्डी कई प्रकार की होती है। ये तीन साइज़ में या आकार में
आम तौर पर आती हैं या पाई जाती हैं-छोटी, मध्यमाकार और
बड़ी । भीमकायों को बाज़ार बाज़ार घूम के अपने लिए ढूंढना पढ़ती
है जिसको हम एक्स्ट्रा लार्ज कहते हैं।

ये दो प्रकार के कपड़ों में पायी जाती हैं-सूती और नायलोन । सूती
में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पायी-पट्टे वाली चड्डी ने। इसके कपडे में
पट्टे की डिजाइन बनी होती है। ये दो प्रमुख रंगों में उपलब्ध होती
है-आसमानी और हल्का हरा। तोते को डिटर्जेंट पावडर से नहला
दो तो जो रंग बचेगा वैसा। इसको बांधने की विधि जग-जाहिर है
फिर भी आपको बतलाये देते हैं-इसको नाड़े से बांधा जाता है। आम
आदमी से लगा कर नेता तक इसके मुरीद हैं। ये सबके फटे छुपा के
रखने में सक्षम जो है। इसमें ventilation भी बढ़िया रहता है।
समस्त प्रकार की गंध-दुर्गन्ध तेज़ गति से वायु में प्रसारित
होती है। इससे इसको पहनने वाला जल्दी हल्का महसूस करता
है और उसके इर्द गिर्द मौजूद लोग सर भारी। सूती में ही दूसरा
प्रकार है -होजियरी वाला कपडा। इसमें लचीलापन होता है जो
समय के साथ साथ कम होता चलता है। ये कपडा पहले एक साल
चला करता था, मगर तकनीकी गुणवत्ता नाम के शब्द के आविष्कार
के बाद ये तीन महीने से ज्यादा चल जाए तो शायद बनाने वाली
कंपनी आपको पूरे पैसे वापस कर दे। अगर तीन महीने से ज्यादा
चल जाए तो कंपनियों के सारे पटिये बिक जायेंगे ना जी। और फिर
अन्दर की बात-आराम का मामला करने वालों की रोज़ी रोटी भी
मारी जाएगी। जब फ़िल्में मिलना या चलना बंद हो जाती हैं तो
अन्दर बाहर की बातें होने लगती हैं।

होज़ियरी में दो किस्में होती हैं-सादी और रंगीन तड़क भड़क वाली।
होज़ियरी शब्द से ऐसा प्रतीत होता है जैसे इससे होज़े पाईप भी बना
करते हैं। सादी बेचारे मर्द पहना करते हैं और रंगीन महिला वर्ग।
बढ़िया सी दिखने वाली चड्डियों को लौन्जरी कहा जाता है और इसका
देसी अनुवाद है लंगूरी। जी हाँ वही जिसको पहन के पहननेवाला/वाली
लंगूर या लंगूरी लगें।

अभी कुछ समय पहले एक ऐसी चड्डी आई जिसे लोगों ने बेहद
पसंद किया ये बदन को अच्छी तरह से कस लेती मानो आपने
बच्चे का कच्छा पहन लिया हो। उसे पहन कर ऐसा महसूस होता
-अब फटी की तब फटी। ऐसा कुछ नहीं होता और ये तकरीबन
६ महीने से साल भर चल जाती। शायद इसको लंगोट के रिप्लेसमेंट
के तौर पर लौंच किया गया था। इसकी तमाम डिज़ाइन इन्टरनेट
पर विभिन्न वेब साईट पर मिल जाती हैं। ये बात और है जनता
वो वेब साईट डिज़ाइन देखने के लिए नहीं खोलती है। इस प्रकार
की चडडियाँ नायलोन में ज्यादा पायी जाती हैं। कुछ में फूल पत्तियां
बनी होती हैं जिसे आप केवल खरीदते समय देख सकते हैं या
फिर किसी के सूखते हुए कपड़ों के समूह में लहराते हुए। एक बार
ये प्राइवेट प्रोपर्टी हुई नहीं कि जान सामान्य के लिए इसका दर्शन
दर्शन दुर्लभ हो जाता है और ये कयास लगाना मुश्किल हो जाता है
कि डिज़ाइन वाले फूल गुलाब के थे या गेंदे के।

चड्डी को एक कहावत भी समर्पित है-चड्डी डंडे पर टांग के घूमना ।
शेयर मार्केट में दिवाला पिटने के बाद अक्सर कई लोग इस मुद्रा में
देखे जा सकते हैं। या कहावत मुझे सुनने को ज्यादा मिली है बजाये
पढने के। इसकी शान में चलन में एक और मुहावरा है-चड्डी उतरना
जिसका सीधा अर्थ है नंगा हो जाना, तात्पर्य ये है कि किसी के गोपनीय
पहलू उजागर हो जाते हैं तो कहा जाता है-फलां कि चड्डी सरे बाज़ार
उतर गई या फलां सरे बाज़ार नंगा हो गया।

अब कुछ और पहलुओं पर नज़र दौडाते हैं। इनके आकार प्रकार पर।
कुछ तम्बू जैसी मिलेंगी तो कुछ ऐसा मानो पहनने की औपचारिकता
मात्र निभाई जा रही हो। दुकानदारकी भाषा में कहते हैं-ट्रंक वाली और
बिना ट्रंक वाली । बिना ट्रंक वाली अंग्रेजी के अक्षर 'वी' आकार में मिलती
है। दूसरा अंग्रेजी का "ऐ" कहलाता है जिसमें २-४ इंच टांगों को छुपाने
की भी व्यवस्था रहती है।


इसके अलावा आजकल एक शब्द की मटियामेट करने का ज़माना है
वो है-डिज़ाइनर। आपको डिज़ाइनर चड्डी भी भी मिलेंगी। सीधा अर्थ ये
निकला कि चड्डी हलवाई या बढई बनाया करते थे। पुराने शिल्पकारों
और नमूनाकारों की कोई कद्र या उल्लेख ही नहीं। बांधने के प्रकार पर
चर्चा शायद बाकी है। एक तो नाड़े वाली दूजी इलास्टिक वाली। इलास्टिक
वाली अपने इलास्टिक से चड्डी को कमर के ऊपर रोक कर रखती है।
इसमें समय की थोड़ी समय की बचत होती है मगर ये चमड़ी पर निशान
बना देती है। बांधने वाली या नाड़े वाली को बार बार बांधो खोलो का
झंझट। उसके अलावा नाड़ा टूट जाए तो सरक कर ये भूमि का चुम्बन
लेने को आतुर हो उठती है।

चड्डी के इतिहास में किसी की दिलचस्पी हो तो इस लिंक को क्लिक
कर लें - चड्डी का संक्षिप्त इतिहास या अन्तःवस्त्र का इतिहास

चड्डी को आप ऐसा वैसा वस्त्र ना समझें। वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब
हिंदी फिल्मों में चड्डी के ऊपर गीत बनेंगे और किसी साबुन बनाने
वाले निर्माता ने कहीं कहा-"हम साबुन बनाते हैं" उसी तर्ज़ पर एक
दिन कोई निर्माता गर्व से कहेगा-हम चड्डी बनाते हैं। शायद एक आध
फिल्म भी बन जाए-एक चड्डी दो नाड़े। जिस गति से कुकुरमुत्ते की
तरह प्रबंधन और अभियांत्रिकी संस्थान खुल रहे हैं लगता है किसी दिन
यकायक किसी संस्थान में "Management of Undergarments" या
फिर "Dynamics of Undergarments" के पाठ्यकर्म भी शुरू हो
जायेंगे । अंत में इन पाठ्यक्रमों के हिंदी अनुवाद आपको बताता चलूँ-
"अंतःवस्त्र प्रबंधन" और "अंतःवस्त्र गतिकी" ।






गीत के बोल:

अरे भाई इसके भी बोलों की ज़रुरत है क्या ?
इतना मसाला जो छाप दिया है पढने को उसी से काम चला लें
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Chaddi pehan ke phool khila hai-Mogli Serial Title Song

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