हम चाहें या ना चाहें-फिर भी १९७१
सन्दर्भ में कहे जाने वाले शब्द हैं. इस प्रकार की फिल्मों में भी
संगीतमय तत्व पाए जाते हैं चाहे वो बैकग्राउंड स्कोर के रूप में
ही हों. रघुनाथ सेठ ऐसी फिल्मों में संगीत देने के लिए विख्यात
रहे.
आर्ट फिल्मों की बात की जाए तो आपको पिछली कई पोस्ट में
इसका उल्लेख मिलेगा. कई फ़िल्में हरभजन की डूसरा या वार्न
की गुगली की तरह दायें बाएं से सटक जाती हैं तो कुछ फ़िल्में
कब आर्ट से फार्ट की ओर अग्रसर हो जाती, पता ही नहीं चलता
देखने वाले को.
चलिए अपने मुद्दे पर लौटें और गीत सुनें जिसे हेमंत कुमार ने
गाया है, इसे लिखा पंडित नरेन्द्र शर्मा ने जिन्होंने फिल्म जगत
को कई अनमोल गीत दिए हैं.
निर्देशक की कल्पनाशीलता की दाद देना पड़ेगी. फिएट से नायिका
के उतरते समय पंक्तियाँ आती हैं-उतरा आकाश धरा पर. नायक
हैं प्रताप शर्मा और नायिका हैं उर्मिला भट्ट. प्रताप शर्मा को इस
फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था. फिल्म को भी उस
वर्ष की सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का पुरस्कार दिया गया था.
गीत के बोल:
हम चाहें या ना चाहें
हमराही बना लेती हैं
हमको जीवन की राहें
हम चाहें या न चाहें
ये राहें कहाँ से आतीं
ये राहें कहाँ ले जातीं
ये राहें कहाँ से आतीं
ये राहें कहाँ ले जातीं
राहें धरती के तन पर
आकाश की फैली बाहें
हम चाहें या न चाहें
हमराही बना लेती हैं
हमको जीवन की राहें
हम चाहें या न चाहें
उतरा आकाश धरा पर
तन मन कर दिया निछावर
उतरा आकाश धरा पर
तन मन कर दिया निछावर
जो फूल खिलाना चाहें
हँस हँस कर साथ निबाहें
हम चाहें या न चाहें
हमराही बना लेती हैं
हमको जीवन की राहें
हम चाहें या न चाहें
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Ham chahen naa chahen-Phir bhi 1971
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