Apr 14, 2017

गंगा बहती हो क्यों-भूपेन हज़ारिका

भूपेन हजारिका का गाया एक गैर फ़िल्मी गीत सुनते
हैं. इसे पंडित नरेन्द्र शर्मा ने लिखा है और संगीत
स्वयं भूपेन हजारिका ने तैयार किया है.



गीत के बोल:


विस्तार है अपार  प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ

नैतिकता नष्ट हुई  मानवता भ्रष्ट हुई
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ
ओ गंगा बहती हो क्यूँ

विस्तार है अपार  प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ

नैतिकता नष्ट हुई  मानवता भ्रष्ट हुई
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ
ओ गंगा बहती हो क्यूँ

विस्तार है अपार  प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ

अनपढ़ जन अक्षरहीन
अनगिन जन खाद्यविहीन
नेत्रविहीन दिक्षमौन हो क्यूँ?
इतिहास की पुकार  करे हूंकार
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को
सबल-संग्रामी  समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूँ

व्यक्ति रहे व्यक्ति केंद्रित
सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निष्प्राण समाज को छोड़ती ना क्यूँ

विस्तार है अपार  प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ

रुदस्विनी तुम न रहीं
तुम निश्चय चेतन नहीं
प्राणों में प्रेरणा बनती न क्यूँ
उनमद अवनि कुरुक्षेत्रग्रमी
गंगे जननी  नव भारत में
निर भीष्मरूपी सुतसमरजयी जनती नहीं हो क्यूँ

विस्तार है अपार  प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
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Ganga bheti ho kyun-Non film song

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