गंगा बहती हो क्यों-भूपेन हज़ारिका
हैं. इसे पंडित नरेन्द्र शर्मा ने लिखा है और संगीत
स्वयं भूपेन हजारिका ने तैयार किया है.
गीत के बोल:
विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
नैतिकता नष्ट हुई मानवता भ्रष्ट हुई
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
नैतिकता नष्ट हुई मानवता भ्रष्ट हुई
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
अनपढ़ जन अक्षरहीन
अनगिन जन खाद्यविहीन
नेत्रविहीन दिक्षमौन हो क्यूँ?
इतिहास की पुकार करे हूंकार
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को
सबल-संग्रामी समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूँ
व्यक्ति रहे व्यक्ति केंद्रित
सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निष्प्राण समाज को छोड़ती ना क्यूँ
विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
रुदस्विनी तुम न रहीं
तुम निश्चय चेतन नहीं
प्राणों में प्रेरणा बनती न क्यूँ
उनमद अवनि कुरुक्षेत्रग्रमी
गंगे जननी नव भारत में
निर भीष्मरूपी सुतसमरजयी जनती नहीं हो क्यूँ
विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूँ
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Ganga bheti ho kyun-Non film song
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