गुलों में रंग भरे–गज़ल मेहँदी हसन
कुछ लोकप्रियता की हदें पार कर देते हैं. मेहँदी हसन के गाये
गीत और गज़लों में से ४-५ लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं.
आज सुनिए फैज़ अहमद फैज़ की रचना जिसे आपने कई
बार सुन लिया होगा पहले भी.
इस गज़ल को कई गायकों ने गाया है बाद में जिनमें से एक
रुना लैला का गाया वर्ज़न लोकप्रिय है.
गज़ल के बोल:
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
क़फ़स उदास है यारों सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरे आक़बत सँवार चले
चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
कभी तो सुबह तेरे कुंज-ए-लब्ज़ हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-ए-बार चले
चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
मक़ाम फैज़ कोई
मक़ाम फैज़ कोई राह में जंचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
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Gulon mein rang bhare-Mehdi Hasan
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