Dec 21, 2009

न आदमी का कोई भरोसा-आदमी १९६८

मोहम्मद रफ़ी का गाया एक गीत। गीत गंभीर किस्म का है
और इसको जब आप बार बार सुनते हैं तो इसके प्रशंसक
बनते जाते हैं। आदमी की फितरत को बयां करता ये गीत है
फिल्म आदमी से जिसे दिलीप कुमार पर फिल्माया गया है।
बोल शकील के हैं और धुन नौशाद की।



गीत के बोल:

तेरी मोहब्बत पे शक नहीं है,
तेरी वफाओं को मानता हूँ
मगर तुजे किस की आरजू है,
मैं ये हकीकत भी जानता हूँ

न आदमी का कोई भरोसा, न दोस्ती का कोई ठिकाना
वफ़ा का बदला है बेवफाई, अजब जमाना है ये ज़माना

न आदमी का कोई भरोसा

न हुस्न में अब वो दिलकशी है, न इश्क में अब वो ज़िन्दगी है
जिधर निगाहें उठा के देखो, सितम हैं धोखा है बेरुखी है
बदल गए ज़िन्दगी के नगमे, बिखर गया प्यार का तराना

न आदमी का कोई भरोसा

दवा के बदले में ज़हर दे दो, उतार दो मेरे दिल में खंजर
लहू से सींचा था जिस चमन को, उगे हैं शोले उसी के अन्दर
मेरे ही घर के चिराग ने खुद, जला दिया मेरा आशियाना

न आदमी का कोई भरोसा

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