Jul 5, 2009

रिपीट वैल्यू थेओरी

एक मित्र हैं मेरे, जो ऑरकुट पर एक ग्रुप के मालिक हैं। कुछ ख़ास संगीतकारों के
और खास युग के गीत सुनते हैं। उन्होंने एक थ्योरी को जन्म दिया या यूँ कहें जन्म
देने का प्रयास करते रहते हैं-"रिपीट वैल्यू थ्योरी " । शब्दकोष के अनुसार थ्योरी
शब्द के ये अर्थ हैं-अनुमान, उत्पत्ति, कल्पना, नियम, विद्या, सिद्धांत।

ये रिपीट वैल्यू थ्योरी सबसे प्रसिद्ध गायक और संगीतकारों के लिए उपजाई गई प्रतीत
होती है। जैसे उदहारण के लिए लता मंगेशकर का गाया गाना अगर नौशाद, मदन मोहन
या शंकर जयकिशन द्वारा कम्पोस किया हुआ तो ये थ्योरी लागू नहीं होगी। अगर अपने
गलती से गुलाम मोहम्मद या सज्जाद हुसैन के संगीतबद्ध किए लता के गाने का जिक्र
छेड़ दिया तो वे रिपीट वैल्यू का राग अलापना शुरू कर देंगे । इसके अलावा चित्रगुप्त,
सपन जगमोहन, सोनिक ओमी, सपन चक्रवर्ती, बिपिन बाबुल, उषा खन्ना, सी अर्जुन
और करीब १०० से ज्यादा संगीतकार हैं जिन्होंने १९५० से १९७५ के बीच संगीत दिया है।
ये सभी नाम उनको कुछ एलिएन के नामों जैसे लगते हैं । बावजूद इसके दावा है उनका
कि वे मधुर संगीत को पसंद करते हैं। अब मधुर संगीत तो कोई भी बना सकता है। वो
किसीका पेटेंट थोड़े ही है। केवल एक गीत बनाके जानी बाबू कव्वाल प्रसिद्ध हो सकते हैं।
याद कीजिये फ़िल्म नूरमहल का सुमन कल्याणपुर का गाया गीत-"मेरे महबूब न जा" ।
इसकी गुणवत्ता किसी भी नामचीन संगीतकार के गीतों से कम नहीं है। लच्छीराम का
संगीतबद्ध किया हुआ लता मंगेशकर का गाया हुआ गीत है- ऐ दिल मचल मचल... '
मैं सुहागन हूँ ' फ़िल्म का। ऐसे ही वी. बलसारा ने एक गीत से ही अपनी छाप ऐसी
छोड़ी है की आने वाले कई सालों तक नहीं मिटेगी। गीत है भोजपुरी फ़िल्म के लिए लता
का गाया हुआ -मोरे नैना सावन भादो ।

इस थेओरी का आम श्रोताओं से कोई लेना देना नहीं है। वो उनके ग्रुप के अदद ४०० सदस्यों
में से कुछ ख़ास यानि कि १०-१२ के लिए होती है। उन महाशय का याहू के ग्रुप पर भी येही
ड्रामा चला करता था। उनका ऐसा मानना है कि लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने केवल टुपर- टुपर
ढोलक बजा के इतने साल गुज़ार दिए।

अब बिना हाजमोला खाए ये पचाना बहुत ही मुश्किल काम है कि जिन संगीतकारों ने ५०० से
ऊपर फिल्मों में संगीत दिया हो और जो फिल्म इंडस्ट्री पर ३५ साल छाये रहे हों, वो खाली
ढोलक की बेसुरी आवाजों के सहारे कैसे अपनी गाड़ी ढकाने में कामयाब हो गए जबकि कई
प्रतिभाशाली संगीतकार इक्का दुक्का फिल्में करने के बाद गायब हो गए।

जैसा कि ग्रुप्स में होता आया है कि एक आई. डी. बना के आप कुछ पोस्ट करिए
और दूसरी आई. डी. से उसी पोस्ट के लिए वाह-वाह कर लीजिये, कौन देखने वाला है ।
कुछ महँ हस्तियाँ तो ख़ुद ही जानना आइ डी बना के अपने ब्लॉग पर वाह वाह करते
मिलेंगे आपको । अब उदाहरण के लिए आप असित हैं और कोई आपकी बात नहीं मान
रहा है तो सीता नाम से एक और आई. डी. बनाके अपनी बात को वजन दे दीजिये।
वैसे भी मूढ़मतियों का मानना है कि कन्याएं और महिलाएं हमेशा सत्य ही प्रस्तुत करती हैं ।
इन्टरनेट पर ,बदसूरत जनानियां सबसे सुंदर अभिनेत्री का फोटो चिपकाये मिल जाएँगी।

आश्चर्य तो तब होता है जब ५०-१०० लोग इकट्ठे होके किसी कलाकार या संगीतकार पे
सर्वे करके उल-जलूल नतीजों को दूसरों के सर पे थोपने की कोशिश करते हैं। कुछ पूछो तो
कहते हैं-"स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक हैं, कुछ भी कह सकने के लिए स्वतंत्र हैं."

इसको देख के मुझे वो डॉक्टर की दुकान याद आती है, जो बैठा बैठ मक्खी मारा करता,
उसके दोस्त ने उसको एक आईडिया दिया-हम लोग रोज़ १ घंटे तेरी दुकान पे आ के
बैठा करेंगे, गोया कि मरीज़ हों। भीड़ लगी देख के धीरे धीरे मरीज़ आना शुरू कर देंगे।
ये फार्मूला सदियों से चला आ रहा है और कामयाब भी है।

वैसे इन मित्र का आभा मंडल काफ़ी विस्तृत है। ये आंग्ल भाषा के अच्छे जानकर हैं अतः
इनके चाहने वाले लच्छेदार और घुमावदार भाषा यत्र तत्र प्रयुक्त करते रहते हैं जो मूल मुद्दे
से वार्तालाप को भटकाने का काम करती है। आपको याद होगा दूरदर्शन पर एक सीरियल
आया करता था -Yes Minister । इसमे ब्रिटिश अफसर काफ़ी उलझी हुई भाषा का प्रयोग
करते थे। भाषा भी ऐसी कि सुनने वाला बाल नोचने पर मजबूर हो जाए।

एक बार मैंने इनको लक्ष्मी प्यारे के संगीत पर अनावश्यक छींटाकशी न करने की सलाह
दी थी। उसके बाद से इन्होने मुझे अपना मित्र मानने से इनकार कर दिया । ये एक उदाहरण
है इंटरनेट पर हुई दोस्ती का । वैसे इनको कटाक्ष, ताना और व्यंग्य के बीच का अन्तर मालूम
नहीं है । ये इनके विचारों से विपरीत जाती धारा को कटाक्ष की संज्ञा तुरंत ही प्रदान कर देते हैं,
बहुत उदार ह्रदय के जो हैं, आदान प्रदान में जरा भी विलम्ब नहीं करते हैं।

ये तो हुई उनकी तारीफ़, अब थोड़ी सी बुराई भी हो जाए- ये जनाब गानों के लिए एक शब्द वाले
विशेषण ढूँढने में माहिर हैं और उनके ये विशेषण एकदम सटीक बैठते हैं। इसके अलावा जब वो
तटस्थ भाव में होते हैं तो उनके विश्लेषण पढना एक आनंददायी अनुभव होता है। वे प्रेरक, उत्प्रेरक
की भूमिका निबाहने में और गतिविधियों को ऋणात्मक गति प्रदान करने में समान रूप से समर्थ हैं।

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