मैं अलबेली -जुबैदा २०००
एक राजस्थानी लोक कलाकार अगर किसी आधुनिक दक्षिण भारतीय
धुन पर नाचे तो कैसा लगेगा, समझने के लिए, आइये इस गीत पर
गौर करें। ये गीत फ़िल्म जुबैदा का सबसे अनूठा गीत है। नृत्य
बढ़िया है और संगीत भी, मगर एक दूसरे पर फिट नहीं बैठ रहे हैं।
पीरियड फिल्मों में उस समय से मिलता जुलता खाका तैयार करना
पढता है। इस गीत में वेशभूषा और नृत्य भले ही पुराने ज़माने के लगते
हों मगर धुन मॉडर्न सुनाई देती है। कविता कृष्णमूर्ति का गाया हुआ
ये गीत कर्णप्रिय है और इसमे जगह जगह पर सुखविंदर सिंह की
आवाज़ की खूबसूरत मिलावट है। जुबैदा फ़िल्म के गीतों में से सबसे
ज्यादा मैंने इसको ही सुना है।
गाने के बोल:
रंगीली हो, सजीली हो
रंगीली हो, सजीली हो
अलबेली ओ, अलबेली ओ
मैं अलबेली
घूमों अकेली
कोई पहेली हूँ मैं
हो,मैं अलबेली
घूमों अकेली
कोई पहेली हूँ मैं
पगली हवाएं जहाँ भी ले जाएँ मुझे
इन हवाओं की सहेली हूँ मैं
तू है रंगीली हो, तू है सजीली हो
हिरनी हूँ बन में
कली हूँ गुलशन में
शबनम कभी हूँ मैं
कभी हूँ शोला
शाम और सवेरे सौ रंग मेरे
मैं भी नहीं जानूं आखिर हूँ मैं क्या
तू अलबेली, घूमे अकेली, कोई पहेली
पहेली.....
मेरे हिस्से में हैं आई कैसी बेताबियाँ
मेरा दिल घबराता है मैं जाऊं चाहे जहाँ
हम्म हम्म
मेरे हिस्से में हैं आई कैसी बेताबियाँ
मेरा दिल घबराता है मैं जाऊं चाहे जहाँ
मेरी बेचैनी ले जाए मुझको जाने कहाँ
मैं एक पल हूँ यहाँ
मैं एक पल हूँ यहाँ, मैं हूँ एक पल वहां
तू बावली है, तू मंचल है
सपनों की है दुनिया जिसमे तू है पली
मैं अलबेली
घूमों अकेली
कोई पहेली हूँ मैं
अलबेली हो
मैं अलबेली
घूमों अकेली
कोई पहेली हूँ मैं
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