मेरे महबूब न जा -नूर महल १९६५
फिल्मी गीतों को लोकप्रिय कराने में झुमरी तलैया, बरकाकाना,
मजनू का टीला और दानापुर जैसी जगहों का योगदान बहुत रहा
जहाँ से सबसे ज्यादा फरमाइशें आती थी मनचाहे गीत और आपकी
पसंद कार्यक्रमों में। कई बार तो ऐसा लगता जैसे फर्जी फरमाइशें
पेश की जा रही हों। आकाशवाणी सेवा सभी तरीके के रिकॉर्ड खरीदती ,
फ़िल्में चली हो या न चली हों। कई गीतों को कार्यक्रम पेश करने वालों
ने जनता तक पहुँचाया। इस गीत को भी ऐसा ही मान लीजिये। फ़िल्म
नूर महल जो सन १९६५ की फ़िल्म है , सिनेमा हॉल में बहुत कम लोगों
को देखने को मिली होगी। इसका एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ -वो है
सुमन कल्याणपुर का गाया हुआ-मेरे महबूब न जा। इसका संगीत प्रसिद्ध
कव्वाल-जानी बाबू ने तैयार किया है। खूबसूरत ख्याल किसी की जागीर नहीं।
वो किसी के भी दिमाग में आ सकता है और ऐसे ही बना करते हैं खूबसूरत
गीत। फ़िल्म का निर्देशन नौशेर इंजिनियर नमक व्यक्ति ने किया था।
गीत में जगदीप(मशहूर कामेडियन ) नायक हैं और चित्रा नाम की युवती
परदे पर दिखाई दे रही हैं जो वाकई में भूतिया दिखाई दे रही है।
गीत के बोल:
आ आ आ
मेरे महबूब न जा, ना जा, ना जा
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
होने वाली है सहर, थोड़ी देर और ठहर
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
होने वाली है सहर, थोड़ी देर और ठहर
मेरे महबूब न जा
देख कितना हसीन मौसम है
हर तरफ़ इक अजीब आलम है
जलवे इस तरह आज निखरे हैं
जैसे तारे ज़मीं पे बिखरे हैं,
जैसे तारे ज़मीं पे बिखरे हैं
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
आ आ आ आ
आ आ आ आ
मैं ने काटें हैं, इंतज़ार के दिन
तब कहीं आए हैं, बहार के दिन
यूँ ना जा दिल की शमा गुल कर के
अभी देखा नहीं है जी भर के
अभी देखा नहीं है जी भर के
मेरे महबूब न जा
जब से जुल्फों की छाँव पायी है
बेक़रारी को नींद आई है
इस तरह मुझको यूँ ही सोने दे
रात ढलने दे सुबह होने दे
रात ढलने दे सुबह होने दे,
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
आ आ आ आ
आ आ आ आ
इस तरह फेर कर नज़र मुझसे
दूर जाएगा तू अगर मुझसे
चांदनी से भी आग बरसेगी
शमा भी रौशनी को तरसेगी
शमा भी रौशनी को तरसेगी,
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
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