ज़िक्र होता है जब क़यामत का-माय लव १९७०
गिरने का मन करता है। दान सिंह के संगीत से सजी फिल्म
'माय लव' के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। बस ये गीत कई बार
रेडियो और कैसेट प्लेएर पर सुन लिया । सोचते रहे कि ये कोई
सी ग्रेड फिल्म है और इसमें गरीब से कलाकार होने चाहिए। मगर
नहीं, एक दिन मालूम हुआ कि ये गीत नामचीन कलाकारों पर
फिल्माया गया है।
फिल्म क्यूँ नहीं चली इसकी जानकारी भी नहीं है मुझे। गीत लिखा
है आनंद बक्षी ने। जैसा कि शर्मिला टेगोर हर गीत में करती हैं,
हलकी सी मुस्कराहट के साथ वो अपने गालों में पड़ने वाले गड्ढों
का प्रदर्शन करती हैं, इस गीत में भी ऐसा ही कुछ है।
गीत के बोल:
ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू जो चाहे तो दिन निकलता है
तू जो चाहे तो रात होती है
तुझको देखा है मेरी नज़रों ने
तेरी तारीफ हो मगर कैसे
के बने ये नज़र जुबां कैसे
के बने ये जुबां नज़र कैसे
ना जुबां को दिखाई देता है
ना निगाहों से बात होती है
ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू चली आये मुस्कुराती हुई
तो बिखर जाएँ हर तरफ कलियाँ
तू चली जाए उठ के पहलू से
तो उजाड़ जाये फूलों की गलियां
जिस तरफ होती है नज़र तेरी
उस तरफ कायनात होती है
ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू निगाहों से ना पिलाये तो
अश्क भी पीने वाले पीते हैं
वैसे जीने को तो तेरे बिन भी
इस ज़माने में लोग जीते हैं
ज़िन्दगी तो उसी को कहते हैं
जो बसर तेरे साथ होती है
ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू जो चाहे तो दिन निकलता है
तू जो चाहे तो रात होती है
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JIkr hota hai jab qayamat ka-My Love 1970
Artists: Shashi Kapoor, Sharmila Tagore
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