Mar 19, 2010

काश्मीर की कली हूँ-जंगली १९६१

फिल्म जंगली का ये गीत है। शम्मी कपूर इस फिल्म के नायक हैं
और उनके साथ सायरा बानो नायिका हैं । नायिका गीत के माध्यम
से गुजारिश कर रही है की उससे रूठा ना जाए। काश्मीर के प्राकृतिक
सौंदर्य को दिखता ये गीत देखने में लुभावना है। लता मंगेशकर की
आवाज़ है और संगीत शंकर जयकिशन का। हसरत जयपुरी ने नायकों
के लिए कई चर्चित रोमांटिक गीत लिखे हैं। यहाँ उन्होंने नायिका के लिए
एक वैसा ही गीत लिखा है। जिन लोगों को ओ पी नय्यर और शंकर जयकिशन
के संगीत में अंतर मालूम है वे पहचान सकते हैं कि ये गीत फिल्म 'काश्मीर
की कली' फिल्म से नहीं है। उसके अलावा लता मंगेशकर ने ओ पी नय्यर
के लिए एक भी गीत नहीं गया है कभी भी।



गीत के बोल:

काश्मीर की कली हूँ मैं
मुझसे ना रूठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं
अरे काश्मीर की कली हूँ मैं
मुझसे ना रूठो बाबूजी
मुरझा गाई तो फिर ना खिलूंगी
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं

रंगत मेरी बहारों में
दिल की आग चनारों में
रंगत मेरी बहारों में
दिल की आग चनारों में
कुछ तो हमसे बात करो
इन बहके गुल्ज़ारों में
कुछ तो हमसे बात करो
इन बहके गुलज़ारों में
काश्मीर की कली हूँ मैं
मुझसे ना रूठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं

प्यार पे गुस्सा करते हो
तेरा गुस्सा हमको प्यारा है
प्यार पे गुस्सा करते हो
तेरा गुस्सा हमको प्यारा है
यही अदा तो कातिल है
इसने हमको मारा है
यही अदा तो कातिल है
इसने हमको मारा है

काश्मीर की कली हूँ मैं
मुझसे ना रूठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं

अरे काश्मीर की कली हूँ मैं
मुझसे ना रूठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं

छोडो जी नाराजी को
तोड़ो इस खामोशी को
छोडो जी नाराजी को
तोड़ो इस खामोशी को
आप अजाब हैं शेख जी
समझे ना शहजादी को
आप अजाब हैं शेख जी
समझे ना शहजादी को

काश्मीर की कली हूँ मैं
मुझसे ना रूठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं

अरे काश्मीर की कली हूँ मैं
मुझसे ना रूठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं

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