ये ना थी हमारी क़िस्मत-मिर्ज़ा ग़ालिब १९५५
आज पेश है मिर्ज़ा ग़ालिब कि एक और ग़ज़ल फिल्म मिर्ज़ा ग़ालिब से ।
इस ग़ज़ल में मूल ग़ज़ल के पूरे शेर तो नहीं हैं मगर ये लोकप्रिय है और
इसका शुमार सुरैया के गाये बेहतरीन गीतों में किया जाता है। संगीत
तैयार किया है गुलाम मोहम्मद ने। दृश्य में आपको मिर्ज़ा की भूमिका
में भारत भूषण नाम के कलाकार भी नज़र आयेंगे।
गीत के बोल:
ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता
ये ना थी
ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता
ये ना थी, ये ना थी
ये ना थी हमारी क़िस्मत
तेरे वादे पर जिये हम, तो ये जान झूठ जाना
तेरे वादे पर जिये हम, तो ये जान झूठ जाना
के खुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता
ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
ये ना थी, ये ना थी
ये ना थी हमारी क़िस्मत
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यूँ न घर्क़-ए-दरया
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यूँ न घर्क़-ए-दरया
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता
ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
ये ना थी, ये ना थी
ये ना थी हमारी क़िस्मत
कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
0 comments:
Post a Comment