नदी किनारे साँझ सकारे- प्रभु का घर १९४५
आइये एक बार फिर से गुज़रे ज़माने की ओर चला जाए।
सन १९४५ कि एक फिल्म है-प्रभु का घर। इस फिल्म का
संगीत तैयार किया था खेमचंद प्रकाश ने। फिल्म में कुछ
सुनने लायक गीत हैं। इसी फिल्म से सुनिए पंडित इन्द्र का
लिखा हुआ और खुर्शीद का गाया गीत ।
गीत के बोल:
नदी किनारे साँझ सकारे
मिलते रहियो, हाँ
मिलते रहियो ओ परदेसी
मिलते रहियो ओ परदेसी
ओ परदेसी, परदेसी
मिलते रहियो, हाँ,
मिलते रहियो ओ परदेसी
ठंडी हवाएं संग चलायें
घिर घिर आयें कली घटायें
ठंडी हवाएं संग चलायें
घिर घिर आयें कली घटायें
चांदनी रातें या बरसातें
चांदनी रातें या बरसातें
रुक ना सकेंगी ये मुलाकातें
प्यार की बातें
रुक ना सकेंगी ये मुलाकातें
प्यार की बातें
चाँद ने देखा हमने तुमने
नैनों में नैना डाले
हे हे हे ,नैनों में नैना डाले
नदी किनारे साँझ सकारे
मिलते रहियो, हाँ
मिलते रहियो ओ परदेसी
ये दो पंछी प्यासे आये
प्यासे हैं रस कौन पिलाये
ये दो पंछी प्यासे आये
प्यासे हैं रस कौन पिलाये
पीने पर भी प्यास ना जाए
पीने पर भी प्यास ना जाए
जान गाई अँखियाँ जादू वाले
जान गाई अँखियाँ जादू वाले
तेरे दिल के इशारे
तेरे दिल के इशारे
नदी किनारे साँझ सकारे
मिलते रहियो, हाँ
मिलते रहियो ओ परदेसी
ओ परदेसी
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