ज़रा सामने तो आओ छलिये-जनम जनम के फेरे १९५७
एक संगीत प्रेमी ने कहीं लिखा की बॉलीवुड की स्टंट और पौराणिक, धार्मिक
फ़िल्में सी ग्रेड की फिल्मों में गिनी जाती हैं। कुछ हद तक मैं सहमत हूँ।
व्यावसायिक दृष्टि वाले निर्माता निर्देशकों का ध्यान मसाला फिल्मों तक
सीमित रहा और बॉलीवुड के बड़े बड़े शोमैन जो कहे जाते हैं उन्होंने ऐतिहासिक
या धार्मिक फ़िल्में बनाने का रिस्क कभी नहीं लिया। विजय भट्ट उन सब में
अपवाद हैं एक जिन्होंने बैजू बावरा और गूँज उठी शेहनाई जैसी फ़िल्में बनायीं।
फिल्म जनम जनम के फेरे का निर्देशन मनमोहन देसाई ने किया था तो हम उनको
भी अपवाद मान सकते हैं क्यूंकि उन्होंने आगे चल के अमिताभ के साथ कई सुपरहिट
मसाला फ़िल्में बनायीं।
जनता मनोरंजन हेतु फ़िल्में देखा करती है और ईश्वर का ध्यान तभी करती
है जब जीवन में समस्याएं उभरने लगती हैं। ईश्वर की भक्ति में मनोरंजन का
आनंद प्राप्त करने की क्षमता केवल परम भक्तों और जोगियों में है , आम आदमी
के बस में नहीं।
स्टंट फ़िल्में अक्सर निचले तबके के लोग ज्यादा देखा करते हैं और वे ढिशुम ढिशुम
में अपने रोजमर्रा की निराशा को ख़त्म करने का प्रयास करते हैं। जैसे अधिकतर
ब्लॉगर बीवी की झिडकियां सुनने या बॉस की फटकार सुनने के बाद ब्लॉग लिखने
आ जाते हैं।
हम शायद टोपिक से भटक गए हैं। आइये वापस सी ग्रेड की चर्चा की जाए। तथाकथित
सी ग्रेड फिल्मों का संगीत कभी कभी लोकप्रिय हो जाया करता था। उसका एक अच्छा
उदाहरण फिल्म 'जनम जनम के फेरे' है जिसने सन १९५७ की बिनाका गीतमाला में
नामचीन फिल्मों के संगीत को पछाड़ा और अव्वल नंबर प्राप्त किया।
फिल्म का ये युगल गीत लता और रफ़ी की आवाज़ में है जिसे भारत व्यास ने लिखा है
और धुन बनाई है श्रीनाथ त्रिपाठी ने जिन्हें हम एस. एन. त्रिपाठी के नाम से पहचानते हैं।
फिल्म के दूसरे गीत ज़यादा सुनने को नहीं मिले।
गीत फिल्माया गया है निरूपा रॉय और मनहर देसाई पर।
गीत के बोल:
आत्मा की ये आवाज़ है
ज़रा सामने तो आओ छलिये
छुप छुप छलने में क्या राज़ है
यूँ छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है
ज़रा सामने तो आओ छलिये
छुप छुप छलने में क्या राज़ है
यूँ छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है
ज़रा सामने तो आओ छलिये
हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो
ऐसा कभी ना हो सकता
हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो
ऐसा कभी ना हो सकता
पिता अपने बालक से बिछड़ के
सुख से कभी नहीं सो सकता
हमें डरने की जग में क्या बात है
जब हाथ में तिहारे मेरी लाज है
यूँ छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है
ज़रा सामने तो आओ छलिये
प्रेम की है ये आग सजन जो
इधर उठे और उधार लगे
प्रेम की है ये आग सजन जो
इधर उठे और उधर लगे
प्यार का है ये करार पिया जो
इधर सजे और उधर सजे
तेरी प्रीत पे बड़ा हमें नाज़ है
मेरे सर का तू ही रे सरताज है
यूं छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है
ज़रा सामने तो आओ छलिये
छुप छुप छलने में क्या राज़ है
यूँ छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है
ज़रा सामने तो आओ छलिये
0 comments:
Post a Comment