Apr 3, 2010

झूम बराबर झूम शराबी- ५ रायफल्स १९७४

७० के दशक की शुरुआत में कव्वालियाँ फिर से सुनाई देना शुरू हुयीं।
प्राइवेट क़व्वालियों के अलावा फिल्मों में भी कुछ कव्वालियाँ आयीं जो
चर्चित हुयीं। उनमे से एक है १९७४ की फिल्म ५ रायफल्स की क़व्वाली ।
आइ एस जौहर द्वारा निर्मित एक कम बजट वाली फिल्म जिसे फिल्म
समीक्षक और अन्य जीव 'सी' ग्रेड फिल्म के नाम से जानते हैं काफी चली
और इसका श्री इस क़व्वाली कोज्यदा जाता है बनिस्बत फिल्म की कहानी
और कलाकारों की कलाकारी के। फिल्म में कल्याणजी आनंदजी का संगीत
है मगर इस क़व्वाली का संगीत है अज़ीज़ नाज़ा का। अज़ीज़ नाज़ा की मूल
क़व्वाली थोड़ी लम्बी है और उसे अन्यत्र सुना जा सकता है । इसका फ़िल्मी
संस्करण थोडा छोटा है मगर सुनने वालों को बंधे रखता है। इसी क़व्वाली की
बदौलत 'अंगूर की बेटी' जैसे शब्द लोकप्रिय हुए। गीत किसी नाज़ा शोलापुरी
नाम के शख्स ने लिखे हैं। क़व्वाली फिल्माई गाई है जौहर की पुत्री अम्बिका
जौहर पर।



गीत के बोल:


ना हरम में, ना सुकून मिलता है बुतखाने में
चैन मिलता है तो साकी तेरे मैखाने में

झूम, झूम, झूम
झूम बराबर झूम शराबी, झूम बराबर झूम
झूम बराबर झूम शराबी, झूम बराबर झूम
काली घटा है, हा हा
मस्त फ़ज़ा है, हा हा
काली घटा है मस्त फ़ज़ा है,
जाम उठा कर घूम घूम घूम

झूम बराबर झूम शराबी, झूम बराबर झूम

आज अंगूर की बेटी से मुहब्बत कर ले
शेख साहब की नसीहत से बगावत कर ले
इसकी बेटी ने उठा रखी है सर पर दुनिया
ये तो अच्छा हुआ अंगूर को बेटा ना हुआ
कम से कम सूरत-ए-साकी का नज़ारा कर ले
आ के मयखाने में जीने का सहारा कर ले
आँख मिलते ही जवानी का मज़ा आएगा
तुझको अंगूर के पानी का मज़ा आएगा
हर नज़र अपनी बसद शौक़ गुलाबी कर दे
इतनी पी ले के ज़माने को शराबी कर दे
जाम जब सामने आये तो मुकरना कैसा
बात जब पीने की आ जाये तो डरना कैसा
धूम मची है, हा हा
मयखाने में, हा हा
धूम मची है मैखाने में,
तू भी मचा ले धूम धूम धूम

झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम

1 comments:

मुफ्त का चन्दन,  February 5, 2018 at 3:46 PM  

शुक्रिया

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