चली रे चली रे-झूला १९४१
गीत गा रहे हैं। उस समय में प्लेबैक अर्थात पार्श्व गायन हिंदी फिल्मों
में चालू नहीं हुआ था और फिल्मों में कलाकार खुद ही गीत गाया करते थे
या यूँ कहिये उनसे गीत गवाए जाते थे। अशोक कुमार के साथ जो नायिका
हैं उनका नाम लीला चिटनिस है। गीत में बांसुरी बजने वाले शक्स का नाम
मुमताज़ अली है जो हास्य अली महमूद के पिता हैं। कवि प्रदीप के बोलों
को सुर में बांधा है सरस्वती देवी ने जो हिंदी सिनेमा संगीत क्षेत्र में पहली
महिला संगीत निर्देशक थीं जैसा कि उपलब्ध जानकारी से मालूम पड़ता है
मगर वे तीसरी महिला संगीत निर्देशक थीं। १९३४ में आई हिंदी फिल्म
अद्ल-ए-जहाँगीर में बिब्बो नाम कि शख्सियत ने संगीत दिया था अतः
वे ही ज्ञात प्रथम महिला संगीत निर्देशक कही जा सकती हैं। ये बात और है कि
जो प्रसिद्धि सरस्वती देवी को प्राप्त हुई वो उस समय की बाकी महिला संगीत
निर्देशकों को नहीं मिल सकी।
गीत के बोल:
ना जाने किधर आज मेरी नाव चली रे
चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
ना जाने किधर आज मेरी नाव चली रे
चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
कोई कहे यहाँ चली कोई कहे वहां चली
कोई कहे यहाँ चली कोई कहे वहां चली
मन ने कहा पिया के गाँव चली रे
पिया के गाँव चली रे
चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
मन के मीत मेरे मिल जा जल्दी
दुनिया के सागर में नाव मेरी चाल दी
मन के मीत मेरे मिल जा जल्दी
दुनिया के सागर में नाव मेरी चाल दी
बिलकुल अकेली, अकेली अकेली चली रे
चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
ना जाने किधर आज मेरी नाव चली रे
चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
ऊंची नीची लहरों पे नाव मेरी डोले
मन में प्रीत मेरी पियू पियू बोले
ऊंची नीची लहरों पे नाव मेरी डोले
मन में प्रीत मेरी पियू पियू बोले
मेरे मन मुझ को बता, मेरी मंजिल का पता
मेरे मन मुझ को बता, मेरी मंजिल का पता
बोल मेरे साजन की कौन गली रे
बोल मेरे साजन की कौन गली रे
ना जाने किधर
ना जाने किधर आज मेरी नाव चली रे
चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
कोई कहे यहाँ चली कोई कहे वहां चली
मन ने कहा पिया के गाँव चली रे
पिया के गाँव चली रे
चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
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