मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे-भजन
मानव ईश्वर को गली-गली, जंगल-जंगल मंदिर-मंदिर
ढूंढता फिरता है। इस पर संत कबीर ने कुछ कहा है।
आइये सुनें भूपेंद्र की आवाज़ में एक गैर फ़िल्मी भजन।
ये एक समय आकाशवाणी पर भक्ति संगीत और गैर
फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में खूब बजा करता था।
भूपेंद्र की आवाज़ में जो गंभीर माधुर्य है वो इस भजन
को विशिष्ट बना देती है।
गीत के बोल:
मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे
ना तीरथ में ना मूरत में
ना एकांत निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना कशी कैलाश में
मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपवास में
ना मैं किरया करम में रहता
ना मैं रहता जोग संन्यास में
मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
खोजी होए तुरत मिल जाऊं
इक पल की तलास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में
मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
0 comments:
Post a Comment