दिल कहे रुक जा रे रुक जा-मन की ऑंखें १९७०
प्रकृति की सुंदरता से भरपूर ऐसी जगह पर मन प्रसन्न हो
जाता है. नायिका की सुंदरता के वर्णन वाले गीत तो हजारों
हैं फिल्म संगीत के खजाने में मगर ऐसे गीत कम हैं.
आइये सुनें मन की ऑंखें से एक गीत रफ़ी का गाया हुआ.
बोल हैं साहिर के और संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का.
गीत के बोल:
दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे कहीं
जो बात
जो बात इस जगह में है कहीं पे नहीं
पर्बत ऊपर खिड़की खुले झाँके सुन्दर भोर
चले पवन सुहानी
नदियों के ये राग रसीले झरनों का ये शोर
बहे झर झर पानी
मदभरा मदभरा समा बन धुला धुला
हर कली सुख पली यहाँ रस घुला घुला
तो दिल कहे रुक जा हे रुक जा
ऊंचे ऊंचे पेड़ घनेरे छनती जिनसे धूप
खड़ी बाँह पसारे
नीली नीली झील में झलके नील गगन का रूप
बहे रंग के धारे
डाली डाली चिड़ियों की सदा सुर मिला मिला
चम्पाई चम्पाई फ़िजा दिन खिला खिला
तो दिल कहे रुक जा रे रुक
परियों के ये जमघट जिनके फूलों जैसे गाल
सब शोख हथेली
इनमें है वो अल्हड़ जिसकी हिरणी जैसी चाल
बडी छैल-छबीली
मनचली मनचली अदा छबि जवां जवां
हर घड़ी चढ़ रहा नशा सुध रही कहाँ
तो दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे कहीं
जो बात
जो बात इस जगह में है कहीं पे नहीं
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Dil kahe ruk ja-Man ki ankhen 1970
Artist: Dharmendra
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