यहाँ मैं अजनबी हूँ-जब जब फूल खिले १९६५
में जब कोई भी नायिका उनके साथ काम करने के
लिए तैयार न थी. ये उनकी कुछ फ़िल्में लगातार
फ्लॉप होने के बाद हुआ वाकया था. ऐसे में अभिनेत्री
नंदा आगे आयीं और उनके साथ ये फिल्म की. फिल्म
ज़बरदस्त हिट रही और इसके गाने भी हिट हुए.
इस फिल्म के बाद शशि कपूर का थमा हुआ सिलसिला
रफ़्तार पकड़ने लगा. ये अक्सर होता है जिंदगी में
जब किसी कारक के कारण आपका भाग्य परिवर्तन
हो जाता है. बिगड़े हुए काम बनने शुरू हो जाते हैं.
आइये सुनते हैं इफ फिल्म का एक गीत जो नायक
एक पार्टी में गा रहा है. गांव का सीधा साधा युवक
एक हाई प्रोफाइल पार्टी में पहुँच जाता है और वहाँ
के माहौल से दुखी हो कर ये गीत गा रहा है.
गीत के बोल:
कभी पहले देखा नहीं ये समाँ
ये मैं भूल से आ गया हूँ कहाँ
यहाँ मैं अजनबी हूँ
मैं जो हूँ बस वही हूँ
यहाँ मैं अजनबी हूँ
कहाँ शाम-ओ-सहर ये कहाँ दिन रात मेरे
बहुत रुसवा हुए हैं यहाँ जज़्बात मेरे
नई तहज़ीब है ये नया है ये ज़माना
मगर मैं आदमी हूँ वही सदियों पुराना
मैं क्या जानूँ ये बातें ज़रा इन्साफ़ करना
मेरी ग़ुस्ताख़ियों को ख़ुदारा माफ़ करना
तेरी बाँहों में देखूँ सनम ग़ैरों की बाँहें
मैं लाऊँगा कहाँ से भला ऐसी निगाहें
ये कोई रक़्स होगा कोई दस्तूर होगा
मुझे दस्तूर ऐसा कहाँ मंज़ूर होगा
भला कैसे ये मेरा लहू हो जाए पानी
मैं कैसे भूल जाऊँ मैं हूँ हिन्दोस्तानी
मुझे भी है शिकायत तुझे भी तो गिला है
यही शिक़वे हमारी मोहब्बत का सिला है
कभी मग़रिब से मशरिक़ मिला है जो मिलेगा
जहाँ का फूल है जो वहीं पे वो खिलेगा
तेरे ऊँचे महल में नहीं मेरा गुज़ारा
मुझे याद आ रहा है वो छोटा सा शिकारा
यहाँ मैं अजनबी हूँ
मैं जो हूँ बस वही हूँ
यहाँ मैं अजनबी हूँ
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Yahan main ajnabi hoon-Jab jab phool khile 1965
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