छम्मा छम्मा-चाइना गेट १९९८
चाय की चुस्कियां लेते समय सुने थे. गौरतलब है ये गाना ग्रामीण
क्षेत्रों में भी उतना ही चर्चित रहा जितना शहरी क्षेत्रों में. उसकी एक वजह
भी है. किसी समय में गांव के मेले में नौटंकी, नाच वगैरह के कार्यक्रम
हुआ करते थे. बुद्धू बक्से के आने के बाद मेला, नाच नौटंकी का आकर्षण
कम होता चला. जैसे जैसे साधन पहुँच में होते गए, मनोरंजन के नए
साधन हाथों में आते गए, शौक सामूहिक न हो के व्यक्तिगत हो चला है.
मेरा गाना, मेरी पसंद, मेरा टी वी, मेरा डी वी डी , मेरा आईपोड. इस फिल्म
को मैंने नामचीन कलाकारों के अलावा दूसरी वजह से भी देखा था. मुकेश
तिवारी जो एन एस डी से पास हुआ उसके बाद फिल्मों में उसे ये सबसे
बड़ा ब्रेक मिला. हालाँकि जनता की उम्मीदें ज्यादा थीं और शोले के
गब्बर के किरदार के सामने 'चाइना गेट' के डाकू का किरदार फीका ही
लगा. ध्यान देने लायक बात ये है कि गब्बर का किरदार अमजद खान के
फ़िल्मी कैरियर का सबसे लोकप्रिय और दमदार किरदार साबित हुआ.
अमजद उस ऊँचाई को पार न कर सके. उनकी अभिनय क्षमता पर सवाल
नहीं है ये, वरन उस किरदार के ऐतिहासिक आकार की बात है जो समय के
साथ साथ ऊँचाई लेता गया. अमजद ने बहुत बुलंदियां छुईं अभिनय की,
उनका गब्बर उनके साथ साथ बढ़ता गया. ये विचित्र सी विडम्बना रही.
मुकेश तिवारी जो मूल बुंदेलखंड क्षेत्र के रहने वाले हैं, उन्हें संवाद बोलने
में तो तनिक भी परेशानी नहीं हुई होगी. उनका अभिनय भी स्वीकार्य
लगा इस फिल्म में. अब १० प्रसिद्द हस्तियाँ, एक आईटम सोंग और
ममता कुलकर्णी के अलावा फिल्म के साथ जुडा हुआ सफल फिल्म
दामिनी के निर्देशक राजकुमार संतोषी का नाम भी नहीं चला पाया
तो अकेले मुकेश क्या कर लेते. फिल्म का जो कुछ चला वो ये प्रस्तुत
गीत है. कुल मिला कर ढीली पटकथा की वजह से ही ये सब हुआ.
ये फिल्म एक सशक्त उदाहरण है कि नामी गिरामी सितारों को लेकर
भी एक फ्लॉप फिल्म बनायीं जा सकती है. दूसरे शब्दों में नामी गिरामी
कलाकार किसी सफलता की गारंटी नहीं हैं जब तक सफलता वाला
तत्त्व फिल्म निर्माण प्रक्रिया में से गायब हो. आपको याद होगा १९८३
की फिल्म शान का क्या हस्र हुआ था. संयोगवश उस फिल्म में भी
खलनायक का किरदार निभाने वाले की वो पहली फिल्म थी. मेरे
ख्याल से कुलभूषण खरबंदा को खलनायक के रूप में जनता ने पसंद
नहीं किया उस वक्त, दूसरे, जेम्स बोंड की फिल्म की लचर नक़ल से ज्यादा
कुछ नहीं साबित हुई वो. सिप्पियों का मैं बड़ा प्रशंसक हूँ और मुझे उस
फिल्म के फ्लॉप होने से ज़रूर दुःख हुआ. फिल्म का संगीत ज़रूर लोकप्रिय
हुआ और उसकी वजह से ही आज लोग फिल्म को याद कर लेते हैं.
सिप्पी की शोले भी विदेशी फिल्मों से प्रेरित थी मगर उसमें कई मौलिक
तत्व ऐसे थे जो कालखंड में उसको मील का पत्थर बनाने के लिए काफी थे.
इस गीत के लेखक है-समीर जिन्होनें गीत लिखने के सारे पुराने रेकोर्ड
तोड़ डाले हैं और आज के समय में वे सबसे ज्यादा गीत लिखने वाले
गीतकार हैं. संगीत दिया है अन्नू मलिक ने. गीत गाया है अलका याग्निक
और सपना अवस्थी ने. गीत में जो भारी आवाज़ है वो सपना अवस्थी की है.
गीत फिल्माया गया है उर्मिला मातोंडकर पर.
गीत के बोल:
ले के परदेसी दिल उड़ गया रे
देखा देखी दिल मेरा जुड़ गया रे
ले के परदेसी दिल उड़ गया रे
छम्मा छम्मा रे छम्मा छम्मा
छम्मा छम्मा बाजे रे मेरी पैंजनिया
छम्मा छम्मा बाजे रे मेरी पैंजनिया
तेरे पास आऊँ तेरी साँसों में समाऊँ राजा
तेरे पास आऊँ तेरी साँसों में समाऊँ राजा
छम्मा छम्मा रे छम्मा छम्मा
छम्मा छम्मा बाजे रे मेरी पैंजनिया
तेरे पास आऊँ तेरी साँसों में समाऊँ राजा
तेरे पास आऊँ तेरी साँसों में समाऊँ राजा
तेरी नींदें उडाऊं
छम्मा छम्मा रे छम्मा छम्मा
देखा देखी दिल मेरा जुड़ गया रे
ले के परदेसी दिल उड़ गया रे
ये मेरा लहंगा बड़ा है महंगा इसे न हाथ लगा
ये मेरा लहंगा बड़ाहै महंगा इसे न हाथ लगा
दिला दूं बंगला, दिला दूं गाडी, दीवानी पास तो आ
मेरी बाली है उम्र मुझे लगता है डर
मेरी बाली है उम्र मुझे लगता है डर
ना कर बेईमानी
छम्मा छम्मा रे छम्मा छम्मा
देखा देखी दिल मेरा जुड़ गया रे
ले के परदेसी दिल उड़ गया रे
हिला दूं यू पी हिला दूं एम् पी, जो मारूं मैं ठुमका
हिला दूं यू पी हिला दूं एम् पी, जो मारूं मैं ठुमका
तेरे ठुमके पे है बम्बई पटना, मैं हारूं कलकत्ता
मेरी पतली कमर मेरी तिरछी नज़र
मेरी पतली कमर मेरी तिरछी नज़र
मेरी चढती जवानी
छम्मा छम्मा रे छम्मा छम्मा
छम्मा छम्मा रे छम्मा छम्मा
तेरे पास आऊँ तेरी साँसों में समाऊँ राजा
तेरे पास आऊँ तेरी साँसों में समाऊँ राजा
तेरी नींदें चुरा लूं
छम्मा छम्मा बाजे रे मेरी पैंजनिया
देखा देखी दिल मेरा जुड़ गया रे
ले के परदेसी दिल उड़ गया रे
हो छम्मा छम्मा
तेरी नींदें चुरा लूं
छम्मा छम्मा
देखा देखी दिल मेरा जुड़ गया रे
छम्मा छम्मा
हो छम्मा छम्मा
Artist-Urmila Matondkar
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