ज़ुल्फ़ों की सुनहरी छाँव तले-जिंदगी या तूफ़ान १९५८
फिल्म से एक गीत सुनते हैं तलत महमूद की आवाज़ में.
गीत शांत किस्म का है और इसमें नायक के हाथ और
हारमोनियम के अलावा नायिका के चेहरा हिल रहा है बस.
ये गानों की जुल्फों की छांव सुनहरी क्यूँ होती है ये बात
समझ नहीं आती है. क्या लाईट के रिफ्लेक्शन की वजह
से ऐसा होता है या जब बाल सुनहरे हो जाते हैं तब छांव
भी सुनहरी होती चलती है? गीत का संगीत तैयार किया है
नाशाद ने.
गीत के बोल:
उधर बालों में कंघी हो रही है ख़म निकलता है
इधर रग रग से खिंच खिंच कर हमारा दम निकलता है
ज़ुल्फ़ों की सुनहरी छाँव तले
इक आग लगी दो दीप जले
जब पहली नज़र के तीर चले
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
ज़ुल्फ़ों की सुनहरी छाँव तले
इक आग लगी दो दीप जले
जब पहली नज़र के तीर चले
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
जब प्यार हुआ दो नैन मिले
जब आई बहार और फूल खिले
जब बात हुई और लब न हिले
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
इतना सा है दिल का अफ़साना
अपना न हुआ इक बेगाना
नज़रें तो मिली और दिल न मिले
कुछ उनसे हमें शिक़वे न गिले
क्या खूब मिले उल्फ़त के सिले
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
रह रह के तड़पना घबराना
हर बात पे दिल भर भर आना
आँसू भी बहे सीना भी जले
अरमान अजब कांटे में ढले
इस प्यार से हम बेप्यार भले
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
ज़ुल्फ़ों की सुनहरी छाँव तले
इक आग लगी दो दीप जले
जब पहली नज़र के तीर चले
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
मत पूछ के दिल पर क्या गुज़री
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Zulfon ki sunehri chhaon tale-Zindagi ya toofan 1958
Artist: Pradeep Kumar, Nutan
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