दर्द मिन्नतकश-ए-दवा न हुआ-बेगम अख्तर
मिर्ज़ा ग़ालिब की लिखी ग़ज़लें बहुतों ने गई हैं मगर
कुछ एक की आवाजों में ही वो ज्यादा अच्छी सुनाई
देती हैं.
ग़ज़ल के बोल:
दर्द मिन्नतकश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
बंदगी में मेरा भला न हुआ
हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जाएँ
जब तू ही ख़ंजर-आज़मा न हुआ
जमा करते हो क्यूँ रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज 'ग़ालिब’ ग़ज़लसरा न हुआ
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Dard minnatkash-e-dawa-Begum Akhtar Ghazal
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