मन धीरे धीरे गाये रे-मालिक १९५८
विशेषता है. जो गाने वाले हैं उन्हीं पर इसे फिल्माया
भी गया है. फिल्म का नाम है मालिक. गायक कलाकार
हैं तलत महमूद और सुरैया.
शकील बदायूनी के बोल हैं और गुलाम मोहम्मद का
संगीत. मेलोडी ने जब क्वीन बनना शुरू किया था उस
युग का गीत है ये. काफी हद तक बन चुकी थी १९५८
तक.
गीत के बोल:
मन धीरे धीरे गाये रे
मालूम नहीं क्यूँ
मालूम नहीं क्यूँ
बिन गाये रहा न जाये रे
बिन गाये रहा न जाये रे
मालूम नहीं क्यूँ
मालूम नहीं क्यूँ
एक बात ज़बान पर आये रे
एक बात ज़बान पर आये रे
मालूम नहीं क्यूँ
मालूम नहीं क्यूँ
कहते हुए दिल शरमाई रे
कहते हुए दिल शरमाई रे
मालूम नहीं क्यूँ
मालूम नहीं क्यूँ
मन धीरे धीरे गाये रे
पलकों में छुपा कर गोरी
लाई है मिलन की डोरी
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
पलकों में छुपा कर गोरी
लाई है मिलन की डोरी
अब साथ है जीवन भर का
लो थाम लो बैंया मोरी
सब देख नज़र ललचाए रे
सब देख नज़र ललचाए रे
मालूम नहीं क्यूँ
मालूम नहीं क्यूँ
मन धीरे धीरे गाये रे
आशाओं ने ली अंगड़ाई
तन मन में बजी शहनाई
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
आशाओं ने ली अंगड़ाई
तन मन में बजी शहनाई
दिल डूब गया मस्ती में
इक लहर खुशी की आई
दिल हाथ से निकला जाये रे
दिल हाथ से निकला जाये रे
मालूम नहीं क्यूँ
मन धीरे धीरे गाये रे
मन धीरे धीरे गाये रे
मालूम नहीं क्यूँ
मालूम नहीं क्यूँ
…………………………………………………………
Man dheere dheere gaaye re-Maalik 1958
Artists: talat Mehmood, Suraiya
0 comments:
Post a Comment