मैं ख़्याल हूँ किसी और का-मेहँदी हसन ग़ज़ल
चुके हैं पिछले कई बरसों में. किसी किसी वर्ज़न में इसके सारे शेर
नहीं मिलते हैं. मेहँदी हसन का एक वर्ज़न है १९ मिनट वाला. ये
वीडियो वाला वर्ज़न है ११ मिनट का.
बोल: सलीम कौसर
गायक: मेहँदी हसन
संगीत: मेहँदी हसन
ग़ज़ल के बोल:
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सरे-आईना मेरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
मैं किसी की दस्ते-तलब में हूँ तो किसी की हरफ़े-दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
अजब ऐतबार-ओ-बेएतबारी के दरम्यान है ज़िन्दगी
मैं क़रीब हूँ किसी और के मुझे जानता कोई और है
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
तेरी रोशनी मेरे खद्दो-खाल से मुख्तलिफ़ तो नहीं मगर
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
तुझे दुश्मनों की खबर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तेरी दास्तां कोई और थी मेरा वाक्या कोई और है
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
वही मुंसिफ़ों की रवायतें वहीं फैसलों की इबारतें
मेरा जुर्म तो कोई और था पर मेरी सजा कोई और है
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं देखना उन्हें गौर से
जिन्हें रास्ते में खबर हुईं कि ये रास्ता कोई और है
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
जो मेरी रियाज़त-ए-नीम-शब को सलीम सुबह न मिल सकी
तो फिर इसके मानी तो ये हुए कि यहाँ खुदा कोई और है
मैं ख़्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
……………………………………………………..
Main khayal hoon kisi aur ka-Mehdi Hasan Ghazal
0 comments:
Post a Comment