काँटा लागो रे सजनवा-बसंत १९४२
रंगीन युग का फिल्म समाधी का काँटा लगा तो सुन लिया और
उसके बाद उसका रिमिक्स शेफाली ज़रीवाला का काँटा लगा भी
सुना.
कांटे लगने का ये सिलसिला पुराना है. १९४२ की फिल्म बसंत में
जो गीत है उसे प्यारेलाल संतोषी ने लिखा है और इस गीत को गा
रहे हैं पारुल घोष और खान मस्ताना. संगीत है प्रख्यात बांसुरी
वादक पन्नालाल घोष का.
गीत के बोल:
काँटा लागो रे सजनवा मोसे राह चली न जाये
उई माँ राह चली न जाये
काँटा लागो हाँ हाँ
काँटा लागो रे सजनवा मोसे राह चली न जाये
राह चली न जाये मोसे राह चली न जाये
साजन काँटा मीत बने है मोरी गली में आये
साजन काँटा मीत बने है मोरी गली में आये
एक चुपके से चुभे बदन में
एक चुपके से चुभे बदन में दूजा हँसी उड़ाये
राह चली न जाये रामा राह चली न जाये
दैय्या राह चली न जाये
काँटा लागो हाँ हाँ
काँटा लागो रे सजनवा मोसे राह चली न जाये
काँटा लागो रे सजनवा मोसे राह चली न जाये
कलियाँ चुनने चली सजनिया काँटों से घबराये
कलियाँ चुनने चली सजनिया काँटों से घबराये
सुख वो कैसे पाये बावरी
सुख वो कैसे पाये बावरी दुःख से जो डर जाये
सुख वो कैसे पाये बावरी दुःख से जो डर जाये
हाँ आओ सजन हाथ पकड़ लो संग संग दोनों जायें
आओ सजन हाथ पकड़ लो संग संग दोनों जायें
गली गली में काँटे हैं जो कली कली बन जायें
गली गली में काँटे हैं जो कली कली बन जायें
फिर मत कहना कभी सजनिया राह चली न जाये
फिर मत कहना कभी सजनिया राह चली न जाये
मोसे राह चली न जाये
रामा मोसे राह चली न जाये
काँटा लागो रे सजनवा मोसे राह चली न जाये
काँटा लागो रे सजनवा मोसे राह चली न जाये
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Kaanta lago re sajanwa-Basant 1942
Artists: Mumtaz Shanti, Ulhas
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