अंगना बोले काग रे-डोली १९४७
गाया हुआ. नाजिम पानीपती के बोल हैं और गुलाम मोहम्मद ने इसका
संगीत तैयार किया है. गुलाम मोहम्मद के संगीत से सजी अधिकाँश
फ़िल्में ओब्स्क्योर की केटेगरी में आती हैं. हिंदी का शब्द दुर्लभ थोडा
बेहतर है.
तुकबंदी की प्रेक्टिस करनी हो तो अपने इमेजिनेशन की किवडिया को
खोलना पड़ता है. जैसे इस गीत में ही अगर तीन पंक्तियाँ होती मुखड़े
में तो तीसरी पंक्ति में काग, बाग के बाद शायद साग आता. हो सकता
है भाग भी आता.
गीत के बोल:
अंगना बोले काग रे
उजड़ा मन का बाग रे
अंगना बोले काग रे
उजड़ा मन का बाग रे
सावन आया खिले बगीचे
सावन आया खिले बगीचे
देख रही हूँ आँख मीचे
देख रही हूँ आँख मीचे
आये मेरे भाग रे
आये मेरे भाग रे
अंगना बोले काग रे
उजड़ा मन का बाग रे
उन बिन सब कुछ सूना लागे
उन बिन सब कुछ सूना लागे
बिरहा का दुःख सूना लागे
बिरहा का दुःख सूना लागे
पड़ गए दिल में दाग रे
पड़ गए दिल में दाग रे
अंगना बोले काग रे
उजड़ा मन का बाग रे
…………………………………………………………….
Angna bole kaag re-Doli 1947
0 comments:
Post a Comment