जब एक कज़ा से गुज़रो तो-देवता १९७८
जो आम आदमी के ऊपर से निकल जाया करती है.
१९७८ की फिल्म देवता में अगर किसी गीत में आपको
ज्यादा दिमाग खपाना पड़ेगा तो वो है रफ़ी का गाया
हुआ गीत. पूरी फिल्म का सार है इसमें.
फिल का नायक हालात का मारा है और जीवन में
तरह तरह के कष्टों का अनुभव करता है. खुशियों के
पल आते हैं और छिन जाते हैं.जीवन को बेहतर बनाने
के लिए वो भी प्रयत्न करता है मगर नियति उसे
वापस वहीँ खींच लाती है जहाँ से उसका जीवन सफ़र
शुरू हुआ था.
गीत के बोल:
जब एक कज़ा से गुज़रो तो
इक और कज़ा मिल जाती है
मरने की घड़ी मिलती है अगर
जीने की सज़ा मिल जाती है
इस दर्द के बहते दरिया में
हर ग़म है मरहम कोई नहीं
हर दर्द का ईसा मिलता है
ईसा की मरियम कोई नहीं
साँसों की इजाज़त मिलती नहीं
जीने की रज़ा मिल जाती है
मैं वक़्त का मुज़रिम हूँ लेकिन
इस वक़्त ने क्या इंसाफ़ किया
जब तक जीते हो जलते रहो
जल जाओ तो कहना माफ़ किया
जल जाये ज़रा सी चिंगारी
तो और हवा मिल जाती है
जब एक कज़ा से गुज़रो तो
इक और कज़ा मिल जाती है
मरने की घड़ी मिलती है अगर
जीने की सज़ा मिल जाती है
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Jab ek qaza se guzro to-Devta 1978
Artists: Sanjeev Kumar
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