कल रात ज़िन्दगी से-पालकी १९६७
से. शकील बदायूनीं की रचना है और नौशाद का संगीत.
कठिन शब्दों वाला ये गीत समझने और इसका आनंद
लेने के लिए आपको भाषा की अच्छी जानकारी होना
ज़रूरी है अन्यथा इसकी धुन सुन सुन के ही आनंद लेते
रहें.
इस गीत की पहली पंक्ति कुछ ऐसी है जिसे सुन कर
जिंदगी से विपरीत की चीज़ों की याद हो आती है.
अक्सर ऐसे शब्द अकस्मात वाली घटना से जोड़ के
प्रयोग किये जाते हैं.
गीत के बोल:
कल रात ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गई
कल रात ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गई
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई
कल रात ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गई
एक हुस्न सामने था क़यामत के रूप में
एक ख़्वाब जलवागर था हक़ीक़त के रूप में
चेहरा वही गुलाब की रंगत लिए हुए
नज़रें वही पयाम-ए-मुहब्बत लिए हुए
ज़ुल्फ़ें वो ही के जैसे धुँधलका हो शाम का
आँखें वो ही जिन आँखों पे धोखा हो जाम का
कुछ देर को तसल्ली-ए-जज़्बात हो गई
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई
कल रात ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गई
देखा उसे तो दामन-ए-रुख़्सार नम भी था
वल्लाह उसके दिल को कुछ एहसास-ए-ग़म भी था
थे उसकी हसरतों के ख़ज़ाने लुटे हुए
लब पर तड़प रहे थे फ़साने घुटे हुए
काँटे चुभे हुए थे सिसकती उमंग में
डूबी हुई थी फिर भी वफ़ाओ के रंग में
दम भर को ख़त्म गर्दिश-ए-हालात हो गई
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई
कल रात ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गई
ए मेरी रूहे इश्क़ मेरी जाने शायरी
दिल मानता नहीं के तू मुझसे बिछड़ गई
मायूसियाँ हैं फिर भी मेरे दिल को आस है
महसूस हो रहा है के तू मेरे पास है
समझाऊँ किस तरह से दिले बेक़रार को
वापस कहां से लाऊँ मैं गुज़री बहार को
मजबूर दिल के साथ बड़ी घात हो गई
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई
कल रात ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गई
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Kal raat zindagi se mulaqat ho gayi-Palki 1967
Artist: Rajendra Kumar
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