बेताब है दिल बेचैन नज़र-बेरहम डाकू १९५९
आवाज़ में तो तलत महमूद की क्वालिटी का.
उस पर सबा अफगानी के बोल कातिलाना हैं. ऐसा कुछ
हम सुनते थे एक ज़माने में तलत महमूद के बड़े फैन्स
के मुखारविंद से.
काफ़ी हद तक हम भी सहमत हैं उनके विचारों से. कोई
गीत आहिस्ता वाला, धैर्य वाला सुनना हो तो सिर्फ और
सिर्फ तलत महमूद के गाने सुनो.
बेरहम डाकू फिल्म के पोस्टर पर एक युवती अंगडाईयां
लेती हुई दिखती है. क्या इस फिल्म को चलने के लिए
ऐसा करना मजबूरी थी, सवाल खड़ा होता है.
गीत के बोल:
बेताब है दिल बेचैन नज़र
अंजाम हो क्या मालूम नहीं
अपनी भी नहीं कुछ हमको ख़बर
उनका भी पता मालूम नहीं
बेताब है दिल बेचैन नज़र
क़िस्मत ये कहाँ ले आई है
महफ़िल भी जहाँ तन्हाई है
क़िस्मत ये कहाँ ले आई है
महफ़िल भी जहाँ तन्हाई है
फूलों से निकलते हैं शोले
ये राज़ है क्या मालूम नहीं
बेताब है दिल बेचैन नज़र
हम भूल गए मंज़िल का निशां
अब याद नहीं जाना है कहां
हम भूल गए मंज़िल का निशां
अब याद नहीं जाना है कहां
बस उनकी तमन्ना है दिल में
कुछ इसके सिवा मालूम नहीं
बेताब है दिल बेचैन नज़र
अंजाम हो क्या मालूम नहीं
बेताब है दिल बेचैन नज़र
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Betaab hai dil bechain nazar-Beraham Daku 1959
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