पालने में...मासूम सा-मदारी २०१६
तो ऐसा है जिससे हमें किसी व्यक्ति विशेष के जाने पर
ज्यादा दुःख होता है.
जीवन सभी जीते हैं मगर सार्वजनिक जीवन में अपनी
सार्थकता आम जनता को महसूस कराने वाले बहुत कम
लोग होते हैं. ये आपको हर क्षेत्र में मिलेंगे जो प्रसिद्धि
की परवाह किये बिना अपना कार्य निरंतर करते रहते
हैं और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन जाते हैं.
फिल्म संसार में कुछ लोग कम आयु में इस दुनिया को
अलविदा कह चले. इरफ़ान खान भी ऐसी शख्सियत का
नाम है जिनसे आम जनता को काफ़ी सारी उम्मीदें थीं
फिल्मों की सार्थकता बढाने में उनके और योगदान की.
परदे पर उनकी उपस्थिति प्रभावशाली हुआ करती है. एक
छोटे से २० सेकण्ड के विज्ञापन में भी वे कुछ अलग कर
जाया करते थे.
बरसों पहले स्मिता पाटिल के असामयिक अवसान से भी
कुछ इसी तरह का दुःख उपजा था. स्मिता तो बहुत ज़ल्दी
ही दुनिया छोड़ चली थीं मात्र ३३ वर्ष की आयु में.शायद
विधि के ऐसे ही वाक्यों को हम क्रूर नियति कहते हैं.
एक गीत सुनते हैं फिल्म मदारी से. सुखविंदर की आवाज़
है, इरशाद कामिल के बोल और सनी-इन्दर बावरा का संगीत.
गीत के बोल:
पालने में चाँद उतरा खूबसूरत ख्वाब जैसा
गोद में उसको उठाता तो मुझे लगा था वैसा
सारा जहाँ मेरा हुआ
सारा जहाँ मेरा हुआ
सुबह के वो पहली दुआ या फूल रेशम का
मासूम सा मासूम सा
मेरे आसपास था मासूम सा
मेरे आसपास था मासूम सा
एक कमरा था मगर सारा ज़माना था वहाँ
खेल भी थे और खुशी दोस्ताना था वहां
चारदीवारों में रहती थी हजारों मस्तियाँ
थे वही पतवार भी सागर भी थे और कश्तियाँ
थे वही पतवार भी सागर भी थे और कश्तियाँ
मेरी तो वो पहचान था
मेरी तो वो पहचान था या यूँ कहो के जान था वो
चाँद आँगन का
मासूम सा मासूम सा
मेरे आसपास था मासूम सा
मेरे आसपास था मासूम सा
हो मासूम सा
…………………………………..
Palne mein…masoom sa-Madari 2016
Artist: Irfan Khan
0 comments:
Post a Comment