एक कभी दो कभी-बागी २०००
से काले-पीले युग में सन १९५३ में भी एक फिल्म बनी थी जिसमें
कुछ लाजवाब गाने हैं गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे हुए.
समय के साथ ही पीढियां बदल जाती हैं और उनका टेस्ट भी. ९०
के दशक में लोकप्रिय हुए गीतकारों में फैज़ अनवर एक ऐसा नाम
है जिन्होंने गीत लेखन की पुरानी परंपरा को कायम रखने की
कोशिश करी. उनके नाम कभी फायज़ बोला जाता है और कभी
फैज़. मेरे ख्याल से फायज़ ही सही उच्चारण है उनके नाम का.
हम मगर उनके प्रचलित नाम से ही पोस्ट में उल्लेख करते चले
आ रहे हैं.
उनके फिल्म उद्योग में एंट्री की कहानी भी दिलचस्प है. नामी गायक
रूप कुमार राठौड उनकी लेखनी से इम्प्रेस हो कर उन्हें महेश भट्ट
से मिलवाने ले गए और महेश भट्ट ने उन्हें आश्वासन दिया काम
के लिए. महेश भट्ट को अपनी फिल्म के शीर्षक गीत के लिए कुछ
संजीदा और दिल को छू लेने वाला सामान चाहिए था और वो कई
गीतकारों के पास उन्हें नहीं मिला. यूँ कहें प्रारब्ध इंतज़ार कर रहा
था फैज़ का और उन्हें मौका मिल गया इस बहाने. फिल्म का नाम
है-दिल है कि मानता नहीं.
१९६५ में अमरौधा कानपूर में जन्में फैज़ अनवर ने वो सब इस फिल्म
इंडस्ट्री में देखा है, महसूस किया है और झेला है जो कि पुराने सभी
प्रगतिशील और संवेदनशील गीतकारों ने देखा है.
फिल्म तुम बिन का गीत-कोई फ़रियाद जिसे जगजीत सिंह ने गाया
है, संगीत रसिकों के मन में बसा हुआ है. अभी के गीतों में तेरे मस्त
मस्त दो नैन-दबंग उल्लेखनीय है. ये लोकप्रिय गीत हैं इसलिए केवल
इन्हीं का उल्लेख इधर किया है. उल्लेखनीय तो बहुत से गाने हैं.
उन्होंने भी एक बार एक इंटरव्यू में स्वीकार किया कि उन्होंने अपने
गीत बेचे और अच्छे दाम पर बेचे. समय की मांग और ज़रूरत को
उन्होंने बखूबी समझा और सभी प्रकार के गीत लिख डाले. उन्होंने इस
बात का भी जिक्र किया था कि गीत चोरी भी हो जाते हैं.
इस गीत चोरी और साहित्य चोरी बात को बरसों पहले से हम लोगों की
चर्चा में शामिल किया जाता रहा है. कई गीतों के बोल सुन कर हम लोग
चौंका करते थे और हमें लगता था किसी और की रचना है. इस फिल्म
उद्योग में कई ऐसे कारनामे हैं जो ढके हुए और लिपे-पुते हैं. जो पकड़ा
जाए वो चोर अन्यथा हमाम में तो सभी नंगे हैं, देखने कौन जाता है.
बरसों पहले एक फिल्म आई थी-वाडे इरादे जिसमें संघर्ष करता गीतकार
अपने गीत ले कर किसी फिल्म निर्माता के दफ्तर पहुँचता है. उधर एक
सहायक उससे कहता है गीत बेच दो, जिस पर संघर्षरत गीतकार मना
कर देता है. आपको याद हो तो उस सहायक की छोटी सी भूमिका में
इरफ़ान खान थे. आयुष कुमार ने फिल्म के हीरो की भूमिका निभाई
थी जिनका नाम शायद ही आज किसी को याद हो.
गीत की बात कि जाए थोड़ी सी, जिसे कविता कृष्णमूर्ति ने गाया है और
इसका संगीत साजिद वाजिद ने तैयार किया है. गीत मनीषा कोइराला
पर फिल्माया गया है. गीत की शुरूआती पंक्तियाँ किसने गई हैं ये मुझे
मालूम नहीं है. मुझे अरुण बक्षी की आवाज़ लग रही है.
गीत के बोल:
हाय
हुस्न पे इतना मगरूर क्यूं है
चार दिन की है ये ज़िंदगानी
एक चढ़ती उतरती नदी है
जिसको समझा है तूने जवानी
हे हे ला ला ला हे हे ला ला ला
एक कभी होय दो कभी होय होय
एक कभी दो कभी तीन कभी चार चार
आने लगे मेरी गली हाय
होय होय होय होय हे
एक कभी दो कभी तीन कभी चार चार
आने लगे मेरी गली हाय
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
कोई कहे होय लैला मुझे होय
कोई कहे लैला मुझे
कोई कहे स्वीटी मुझे कोई कहे मनचली हाय
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
होय होय
शोख अदाएं ये तीखी निगाहें गुलाब सा महका बदन
रूप की मस्ती ये आँखों का जादू दीवानों का दीवानापन हो
हो ओ ओ शोख अदाएं ये तीखी निगाहें गुलाब सा महका बदन
रूप की मस्ती ये आँखों का जादू दीवानों का दीवानापन हो
देख लूं मैं होय हँस के जिसे होय होय
हँस के जिसे देख लूं मैं समझो के बस मचने लगे
दिल में उसके खलबली हाय
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
आई है कैसी निगोड़ी जवानी के फंस गई मुश्किल में जां
घर से निकलना मुहाल हो गया है मैं जाऊं तो जाऊं कहां हो
हो ओ ओ
आई है कैसी निगोड़ी जवानी के फंस गई मुश्किल में जां
घर से निकलना मुहाल हो गया है मैं जाऊं तो जाऊं कहां हो
सबसे हसीं होय सबसे जुदा होय होय
सबसे जुदा सबसे हसीं मुझसी यहां कोई नहीं
लड़की हूँ मैं चुलबुली हाय
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
एक कभी होय दो कभी होय
एक कभी दो कभी तीन कभी चार चार
आने लगे मेरी गली हाय
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
भंवरे बहुत मैं अकेली कली
हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ ला ला ला ला ला
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Ek kabhi do kabhi-Baghi 2000
Artists: Manisha Koirala, Gulshan Grover
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