ठहरिये होश में आ लूँ-मोहब्बत इसको कहते हैं १९६५
शशि कपूर और नंदा पर फिल्माया गया ये युगल गीत बहुत
मधुर है। इसको सुनकर 'छायागीत' कार्यक्रम याद आता है
विविध भारती का, जिस पर इस गीत को मैंने कई बार सुना है।
गाना शुरू होता है मोहम्मद रफी की आवाज़ के साथ और इसमें
सुधा मल्होत्रा की सहज 'ऊं हूँ ' सुनाई देती है। रात के सन्नाटे में
ये गीत बहुत सुकून देता है। मजरूह सुल्तानपुरी ने इस गाने
को लिखा है । ख़य्याम ने इस गीत की धुन बनाई है और जानकार
संगीत प्रेमी इस बारे में अवश्य जानते हैं।
गाने के बोल :
ठहरिये होश में आ लूँ तो चले जाइएगा
आपको दिल में बिठा लूँ तो चले जाइएगा
कब तलक रहिएगा यूँ ,दूर की चाहत बनके
दिल में याद आयेंगे, इकरार-ए-मोहब्बत बनके
अपनी तकदीर बना लूँ ,तो चले जाइएगा
आपको दिल में बिठा लूँ ,तो चले जाइएगा
मुझको इकरार-ए-मोहब्बत पे हया आती है
बात कहते हुए गर्दन मेरी झुक जाती है
देखिये सर को झुका लूँ तो चले जाइएगा
अपो दिल में बिठा लूँ तो चले जाइएगा
ऐसी क्या शर्म जरा पास तो आने दीजे
रुख से बिखरी हुई जुल्फें बिखरने तो दीजे
प्यास आँखों की बुझा लूँ तो चले जाइएगा
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Thehariye hosh mein aa loon-Mohabbat isko kehte hain 1965
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