May 25, 2017

तुम्हें ज़िन्दगी के उजाले-पूर्णिमा १९६५

आम बोलचाल और साहित्य में क्या फर्क है. एक फर्क
तो जूते का है. सामान्य बोलचाल वाले जूते की मार
तुरंत महसूस होती है. साहित्यिक जूते की मार मखमल
का स्पर्श करती हुई देर से और गहरी मार करती है.

प्रस्तुत गीत है फिल्म पूर्णिमा से जिसकी एक पंक्ति
में शुभेच्छा ज़ाहिर की गयी है और दूसरी पंक्ति में
पीछा छोड़ने के लिए धन्यवाद दिया गया है. गीत की
धुन भी इतनी मासूम है कि सरसरी तौर पर इसे
सुनने में गूढ़ अर्थ समझ नहीं आता. मुकेश के सबसे
लोकप्रिय गीतों में से एक जिसे लिखा है गुलज़ार ने
और इसकी धुन बनाई है कल्याणजी आनंदजी ने.



गीत के बोल:

तुम्हें ज़िन्दगी के उजाले मुबारक
अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं
तुम्हें पा के हम ख़ुद से दूर हो गए थे
तुम्हें छोड़ कर अपने पास आ गए हैं
तुम्हें ज़िन्दगी के उजाले मुबारक
अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं

तुम्हारी वफ़ा से शिक़ायत नहीं है
निभाना तो कोई रवायत नहीं है
तुम्हारी वफ़ा से शिक़ायत नहीं है
निभाना तो कोई रवायत नहीं है
जहाँ तक क़दम आ सके आ गए हैं
अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं

चमन से चले हैं ये इल्ज़ाम लेकर
बहुत जी लिए हम तेरा नाम लेकर
चमन से चले हैं ये इल्ज़ाम लेकर
बहुत जी लिए हम तेरा नाम लेकर
मुरादों की मंज़िल से दूर आ गए हैं
अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं

तुम्हें ज़िन्दगी के उजाले मुबारक
अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं
तुम्हें पा के हम ख़ुद से दूर हो गए थे
तुम्हें छोड़ कर अपने पास आ गए हैं
...........................................................
Tumhen zindagi ke ujale mubarak-Poornima 1965

Artist: Dharmendra

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