उत्तेजना और आकर्षण का सम्मिश्रण : बीडी जलाइले २००७
अपवादों को छोड़ के जिसमे शादी वाले, डांस नंबर या फिर भक्ति
संगीत का लेबल होता था. ज़माने की रफ्तार के साथ साथ बॉलीवुड
का परिद्रश्य भी बदल रहा है. अब ज़माना युवाओं का है जिन्हें
"बीडी जलाइले" जैसे तेज और आकर्षक गीतों को पसंद करते हैं. ऐसे
गीत गगनभेदी स्वरों में आपको रेस्तरां , रेडियो और म्यूजिक चैनल्स
पर बजते हुए मिल जायेंगे.
आइटम शब्द का हिंदी अनुवाद है- चीज़, मद, विषय
आपको जो उपयुक्त लगे उसे धारण कर लें. बीडी जलाइले
को एक आइटम सॉन्ग कहा जाता है . गुलज़ार ने लीक से
हटकर बहुत से साहित्यिक काम किये हैं.
ये कार्य उनमे से एक है.
"न गिलाफ, न लिहाफ
ठंडी हवा के खिलाफ ससुरी
ओ इतनी सर्दी है किसी का लिहाफ लैइले
ओ जा पडोसी के चूल्हे से आग लैइले
बीडी जलाइले जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है "
ओमकारा फिल्म William Shakespeare के ड्रामे
"ओथेल्लो" से प्रेरित है. विशाल भारद्वाज ने इस गाने को
संगीत बद्ध किया है . ये वही विशाल हैं जिन्होंने गुलज़ार
की फिल्म माचिस में भी संगीत दिया था. गाने में स्वर हैं
सुनिधि चौहान, सुखविंदर सिंह, नचिकेता चक्रवर्ती
और क्लिंटन सरेजो की. गाने में आत्मा डालने का जिम्मा
सुनिधि और सुखविंदर को दिया गया है. मस्त फिल्म के गीतों
के लम्बे अंतराल के बाद सुनिधि चौहान का एक बड़ा हिट गीत
श्रोताओं को सुनने को मिला है .
बिल्लो नाम का एक किरदार है फिल्म में जिसको बिपाशा बासु
ने निभाया है. उसी किरदार पे ये गाना फिल्माया गया है. बिपाशा का
अपना एक आकर्षण है जिसका बखूबी इस्तेमाल समय समय पर
सभी फिल्मकार करते रहे हैं. उत्तेजक और सम्मोहक अदाओं ने
इस गाने को प्रभावी बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ी है.
एक नाम जिसको सामान्यतया फ़िल्मी पत्रकार छोड़ दिया करते हैं वो
है इस गाने के नृत्य निर्देशक का या कोरेओग्रफेर का वो हैं
गणेश आचार्य. इस पूरी भीड़ में उनका नाम कहीं खो गया सा लगता है.
जी सिने अवार्ड्स ने उनको सम्मानित किया है इस गाने के लिए.
आइटम सॉन्ग की आवश्यकता बहुत से कारकों पर निर्भर है.
आज के समय में बाजार की मांग सबसे बड़ा कारण है. जैसा की
आम दर्शक समझता है ये फिल्म में जबरदस्ती ठूँसा हुआ
एक अवयव होता है . आप लोगों को याद हो एक फिल्म आई थी
चाइना गेट. बड़े बड़े सितारों से सुसज्जित फिल्म. फिल्म से सम्बंधित
केवल एक ही चीज़ दर्शक याद रख पाया तो वो उसका आइटम सॉन्ग
"छम्मा छम्मा " ये गाना उर्मिला मातोंडकर पर फिल्माया गया था.
तो हम ये मान लेते हैं, इतिहास में स्थान दिलाने को, या फिर दर्शकों
की सीटियों की आवाज़ सुनने को, या फिर चिल्लर बटोरने के लिए
इसका समावेश फिल्म में किया जाता है.
कुछ भी हो ये गाना ९० के दशक की फिल्मों में आये खटिया पटिया
श्रेणी के गीतों से अलग है. आश्चर्य की बात है की इस गीत को
आभिजात्य वर्ग की सराहना भी मिली है. ये ही शायद बदलते
समय और मांग की पहचान है.
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