अंधे की लाठी तू ही है-धूप छांव 1935
१९३५ से गीत लगातार बजता चला आ रहा है । इसके
प्रसंसकों की संख्या बरकरार है । फिल्म धुप
छाओं के लिए पंडित सुदर्शन के लिखे इस गीत को
कुंदन लाल सहगल ने गाया है. संगीत है आर सी
बोराल का । ७४ साल बीत जाने के बावजूद इस गीत का
जादुई असर कम नहीं होता। इश्वर की महिमा उसको
अंधे की लाठी बता के की गयी है। इस गीत का विडियो
अनुपलब्ध है इसलिए ऑडियो सुनके काम चलायें।
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गाने के बोल:
दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग से
इस घर को आग लग गई घर के चिराग से
अंधे की लाठी तू ही है, तू ही जीवन उजियारा है
अंधे की लाठी तू ही है, तू ही जीवन उजियारा है
तू ही आकर सम्भाल प्रभू तेरा ही एक सहारा है
तू ही आकर सम्भाल प्रभू तेरा ही एक सहारा है
अंधे की लाठी तू ही है, तू ही जीवन उजियारा है
अंधे की लाठी तू ही है, तू ही जीवन उजियारा है
दुःख दर्द की गठड़ी सर पर है पग-पग पर गिरने का डर है
दुःख दर्द की गठड़ी सर पर है पग-पग पर गिरने का डर है
परमेश्वर अब पथ राख तू ही
परमेश्वर अब पथ राख तू ही
तू ही पथ राखनहारा है
तू ही पथ राखनहारा है
अंधे की लाठी तू ही है
तू ही जीवन उजियारा है
जिन पर आशा थी छोड़ गये
बालू के घरोंदे फोड़ गये
मुँह मोड़ गये, मन तोड़ गये
मुँह मोड़ गये, मन तोड़ गये
अब जग में कौन हमारा है
अब जग में कौन हमारा है
अब जग में कौन हमारा है
अंधे की लाठी तू ही है,
तू ही जीवन उजियारा है
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